आखिरी चैप्टर
विजय ने पहले तो सोचा कि इस चूहे को आज निपटा ही दूं। यह सोचकर वे झाड़ू उठाने गए ही थे कि दो चूहे मेरे ठीक पांव के बगल से कूद कर सर्र से बाहर निकल गए। डर के मारे मेरी चीख निकल गई। विजय भी हैरान रह गए।
इस चीख की गूंज हमारे मकान मालिक संतोष तिवारी तक पहुंच गई। वे उपर के माले से आवाज लगाकर बोले— क्या हुआ वर्गीय साहब! क्यों हैरान हो रहे हैं? इन्होंने फौरन बाहर निकलकर तिवारी के सवालों का जवाब दिया। तिवारी अच्छा, तो चूहे से परेशानी है! कहकर सोने चले गए।
हम क्या करें, क्या न करें आदि बातों पर विचार करते हुए जैसे—तैसे दरवाजा बंद करके सोने की कोशिश करने लगे।
इस घटना के दस दिन बाद विजय की छुट्टी थी। उन्होंने तब तक इस चूहे से छुटकारा पाने का मन बना लिया था। अत: उन्होंने मकान मालिक से लंबा वाला स्टूल मांगा और बेडरूम में उस पर चढ़कर हुश—हुश करते हुए लॉफ्ट में रखे गत्ते के डिब्बों में दो—तीन बार झाड़ू दे मारी। बड़ी जोर की आवाज हुई। इसके जवाब में चीं—चीं—चीं की और तेज आवाजें आईं। ऐसा लगा एक साथ कई चूहे डरकर आवाजें निकल रहे हों। फिर गत्ते के डिब्बों के बीच में से झांकती हुईं दो बड़ी काली—काली पूंछें दिखीं।
विजय ने उन पूंछों पर झाड़ू से प्रहार किया तो वे पूंछें डिब्बों के पीछे गायब हो गईं। अब विजय से रहा नहीं गया। उन्होंने सोचा कि जो होगा सो देखा जाएगा। इसके बाद उन्होंने झाड़ू नीचे फेंक दी और गत्ते के एक डिब्बे को हाथों में थामकर मुझसे कहा— पकड़ो इसे! मैंने वह डिब्बा थाम लिया।
इसके बाद उस डिब्बे के ठीक पीछे चूहे और उसकी फैमिली के साक्षात दर्शन हुए। चूहा, चुहिया और चार छोटे—बच्चे। गुलाबी और थोड़े से काले—काले उन बच्चों की आंखें खुली नहीं थीं। वे इन सब हलचल से अनजान सो रहे थे। चूहा और चुहिया उन्हें घेर कर ऐसे खड़े थे मानो हमसे मुकाबले की तैयारियों में हो।
इससे पहले कि वे कुछ एक्शन ले पाते विजय के मुंह से डर के साथ हंसी की आवाज निकली— अरे! तो यह बात है! हमारे चूहे राम ने तो पूरा कुनबा ही डिब्बों के पीछे आबाद कर दिया है। देखो न कैसे गत्ते के डिब्बों की आड़ मे अपनी गृहस्थी बसाई है। खूब सारे कागज—रुई आदि इकट्ठे कर रखे हैं और उनके बीच में बच्चों को डाल रखा है।
मैंने कहा— अब मेरी समझ मे सारा माजरा आ गया है। पहले चूहे ने जगह तलाशी। रहने का ठिकाना बनाया। फिर चुहिया को ले आया। इसके बाद उन्होंने शादी की और तब कहीं जाकर उन्होंने बच्चे पैदा किए। सच कितना सुनियोजित और व्यवस्थित प्लान था इसका!
विजय बोले — भले ही यह छोटा जीव है! परेशान करता है। पर हमें यह बता रहा है कि कैसे किसी को अपनी जिंदगी व्यवस्थित करनी चाहिए। देखो न हमने शादी तो कर ली है पर रहने का ठिकाना किए बगैर! इस पर इस चूहे की अक्ल तो देखो। इसने पहले रहने का ठिकाना किया और इसके बाद शादी और फिर बच्चे! सच यह चूहा हमें जिंदगी के लिए कितना अहम सबक सिखा रहा है और हम इसे मारने की कोशिश कर रहे हैं। धिक्कार है मुझे जो मैंने इसे मारने के लिए झाड़ू उठा ली।
इस घटना के कुछ समय बाद विजय का ट्रांसफर सतना हो गया। हम चूहे से रायपुर में मिले सबक के साथ सतना आ गए। यहां आने के बाद विजय ने अपने मकान की कोशिशें तेज कर दीं। सिर्फ छह महीनों के भीतर संयोग ऐसे जुड़े कि हमने तीन कमरे का एक फ्लैट मेन मार्केट में ही ले लिया। यहीं हमारी बेटी प्रत्याशा ने जन्म लिया।
हालाँकि विजय की सैलरी बहुत कम है और प्राइवेट नौकरी होने से यह भी लगता है कि कभी किसी कारण से इस पर आंच न आ जाए ऐसे में अपना फ्लैट होने से हमें काफी निश्चिंतता रहती है कि चलो कम से कम अपने सिर की छत तो कोई हमसे नहीं छीन सकता। दो दशक पहले खरीदे गए इस फ्लैट की कीमत पांच गुना बढ़ चुकी है। इस तरह से यह हमारी ज़िंदगी की सबसे बड़ी पूंजी और सबसे बढ़िया इन्वेस्टमेंट बन गया है। एक चूहे से मिले सबक से हमें इतना लाभ हो सकता है हमने कभी सपने में भी नहीं सोचा था।
हम आज भी उस फ्लैट को गणेश जी की अभिन्न सवारी चूहे की बदौलत खरीदा गया मानते हैं और यदि कभी कोई चूहा इसमें आ भी जाता है तो उसे मारते नहीं। न ही उसके साथ क्रूर बर्ताव करते हैं। बस, उसे चूहेदानी में पकड़कर घर से बेहद दूर छोड़ आते हैं।
(काल्पनिक कहानी )