और दोस्त कैसे हो? — अपने मोबाइल फोन की घंटी बजने के बाद यह मिठास से भरा लेकिन कुछ गंभीर सा स्वर दूसरी तरफ से सुनाई दिया।
बस सब ठीक है लेकिन माफ करना मैंने पहचाना नहीं! आप कौन हैं? — मैंने भरसक विनम्र बनते हुए सवाल दाग दिया। दरअसल, इस फोन के आने से पहले मेरी काम में व्यस्तता इतनी थी कि ऐसा लग रहा था कि मानो सांस लेने की भी फुर्सत नहीं हो।
तो पहचानिए न! आपको याद है वह दिन जब आप चंदेरी में रहते थे और बारिश के दिनों में से एक दिन कॉलेज जाते समय आपकी साइकिल पंचर हो गई थी। तब मैंने ही उसका पंचर ठीक किया था। चूंकि उस दिन आपका पर्स कहीं गिर गया था अत: मैंने आपसे एक पैसा भी नहीं लिया था! — वह कुछ संकोच भरे स्वर में यह वाकया बयान कर रहा था।
मुझे भी याद आया। यह कोई दो दशक पुरानी बात होगी। तब मैं रामजस मेमोरियल कॉलेज, चंदेरी में ग्रेजुएशन की पढ़ाई कर रहा था। तब कस्बे के इकलौते राममंदिर के पास एक पंचर की दुकान में मैं साइकिल लेकर पहुंचा था। उस दुकान पर लगे बोर्ड पर शायद पंचरवाला लिखा हुआ था। तो कहीं यह उस दुकान के मालिक रोहित का तो फोन नह़ीं? इतने सालों बाद इसने क्यों फोन लगाया? कहीं यह मुझे उस दिन पंचर हुई साइकिल ठीक करने के एवज में बिल मय ब्याज के तो नहीं भेजना चाहता है? मेरे मन में ऐसे कई और सवाल घटाओं की तरह उमड़ने लगे। मन में बैचेनी बढ़ गई और उत्सुकता भी कि रोहित को मेरी याद कैसे आ गई?
मैंने अपने मन में उभर रहे सवालों को काबू में लाने की भरपूर कोशिश करते हुए पूछा — रोहित भाई बोल रहे हैं क्या? उधर से आवाज आई — हां! बस क्या था फिर यादों के पहिए का घूमना शुरू हो गया।
मुझे याद आया कि मैं तब रोहित ने अपनी घरेलू परिस्थितियों के कारण पढ़ाई छोड़कर पंचर की दुकान खोल ली थी। उसके पिता लखमीचंद साहू अक्सर बीमार रहते थे और मां मीना बाई कस्बे के बड़े घरों में बर्तन मांजा करती थीं। लखमीचंद चंदेरी में हफ्ते में तीन बार लगने वाली हाट में सब्जियों और फलों का ठेला लगाया करते थे।
मेरा घर यादवों के मोहल्ले में था तो रोहित की दुकान मेन मार्केट में थी। यह दुकान उसने किराए पर ली थी। हम दोनों के घरों के बीच करीब ढाई किलोमीटर का फासला था और मेरा कॉलेज चंदेरी से करीब डेढ़ किलोमीटर आगे स्थित था। मेरे पिता भुवनेश यादव तहसील कार्यालय में एलडीसी थे और मेरी मां रमा देवी पूरी गृहस्थन थीं। मेरे पिता हमेशा मुझे पढाई करने के लिए प्रेरित करते रहते थे। अत: मैंने चंदेरी से ग्रेजुएशन करने के बाद कोटा यूनिवर्सिटी से बीएड कर लिया था।
क्रमश:
(काल्पनिक कहानी)