चैप्टर -1
नन्हे भैया —आगरा हो आए का?
नन्हे भैया के इस सवाल से बदामी लाल और लाल हो गए।
बदामी लाल बोले — हओ भइया! हो आए। अरे बहुतई गजब को सहर है।
बदामी लाल बुंदेलखंड के गांव हीरापुर के बुजुर्ग किसान हैं। उनकी अच्छी लंबी—चौड़ी खेती है। पांच—सात जानवर भी पाल रखे हैं। नन्हे भैया उनके पड़ोसी हैं। जैसे ही नन्हे भैया को पता चला कि अपनी चांदनी को तलाशने के लिए बदामी लाल अपने गांव से आगरा तक का चक्कर लगाकर आए हैं तो उनसे रहा नहीं गया। वे बदामी लाल के आगरा से लौटकर घर में घुसते ही तपाक से पहुंच गए। पौर में जय रामजी की हुई। चिलम—तमाखू का डिब्बा ढूंढा गया। और दोनों ने एक—एक फक्की लगाई और आगरा यात्रा के बारे में सवालों—जवाबों का सिलसिला शुरू हो गया।
नन्हे भैया — तो कैसो लगो आगरा? चांदनी को कछु पतो चलो। नन्हे भैया ने एक मिनट में ही दूसरा सवाल दाग दिया।
बदामी लाल ने सोचा कि आज तो लगत है नन्हे भैया सब कछु जानकरई रे है। इतेक जल्दी जल्दी सवाल छोड़ रओ है। अब हम का बताएं कि कितेक परेशान भए। कितेक रुपइया बरबाद करे।
पर बदामी लाल ने अपने विचारों को खुलकर नन्हे भैया के सामने नहीं कहा और थोड़ी देर चुप रहने के बाद बोले — नन्हे भैया! हमने जिंदगी मे बस दोई सहर देखे हैं एक तो आगरा और दूसरो गवालियर! बाकी जिंदगी तो इतई गांवई में बिता दई। वो तो अच्छो हतो कि तुमाई भौजाई रामकली साथ गईं तीं सो कछु ज्यादा परेशानी नईं भई। बस रुपइया बिलात खरच हो गए।
नन्हे भैया — कितेक रुपइया लुटा दए आगरा में? उते बीमा नगर में हमाई ससुरार है। उते भी गए हते का?
बदामी लाल ने इस सवाल का अंदाज पहले से ही लगा लिया था। वे समझ गए कि नन्हे भैया अपना खर्च बचाना चाहते हैं। बिना ससुराल गए अपने सास—ससुर और सहलजों का हाल—चाल पूछना चाहते हैं।
बदामी लाल बोले —अब तुमें का बताएं! हम ऐसे बीधे रहे कि कितउं नईं जा पाए। हसपताल में भरती रहवे पड़ो सो अलग!
बदामी लाल ने नन्हे भैया के उनकी ससुराल के बारे में पूछे जाने वाले सवालों को रोकने का जैसे पूरा मन बना लिया था। अब गेंद बदामी लाल के पाले में थी। अस्पताल में भरती रहने की बात सुनकर नन्हे भैया हैरान रह गए! वे बोले ।
नन्हे भैया — ऐसो का हो गओ जो हसपताल जावे पड गओ। अरे! तुमाई तबियत तो सही रही कि भौजाई की तबियत बिगड़ी?
बदामी लाल बोले —अरे! नेक धीरज रखो। अब तुम्हें तो मालुमई है कि हमाई चांदनी 15 दिनां से मिल नई रई। पहले तो हम बा को ढूंढवे के लाने झांसी गए। उते जब हमने चांदनी के रूप रंग को बयान करो तो आगरा से आए एक भलो इंसान बोलो कि बा ने ठीक वैसेई झलक आगरा में देखी हती। बस फिर का हतो? हमने आगरा जाबे को मन बना लओ। ब्यारी से निपट के चल दए आगरा तुमाई भौजाई को साथ ले कें। तुमें मालूम है हमाओ नाम आगरा में बहुतई मसहूर है। जैसई हम टिरेन से उतरे उते खड़ो एक भिखारी गाना गा रओ तो— कच्चा बदाम! पक्का बदाम! हम खुंसिया गए। हमने बाको गिरेबान पकड़ लओ। मन करो दो—चार चमेटा धर दएं कनपटी पे। हमने कड़क आवाज में पूछो— काए तुम हमें कच्चो, कच्चो काए कै रए? अरे! हम तो पूरे पके—पकाए हैं। जे देखत नइयां हमाए बार सुपेद पड़ गए। हमाओ जो कहबे को हतो को वो भिखारी बोलो
भिखारी — बाबूजी! टाइम खोटी मत करो! ये तो मशहूर गाना है, हम भीख मांगवे के लाने गा रहे! अब एक—दो रुपइया तो दे दो, बड़ी भूख लगी है।
बदामी लाल बोले —हमें समझ में आ गई कि बेचारो भूखो है। हमें दया आ गई। बाखों को पांच रुपइया को कलदार दओ। हमने मन में सोची कि हो सकत है जा दान—पुन्न से चांदनी को कछु पतो चल जाए!
नन्हे भैया —फिर का भओ? नन्हे भैया को बदामी लाल की आगरा स्टोरी में रस आने लगा था। वे चहक के पूछ बैठे। फिर तुम काए बीमार पड़ गए?
बदामी लाल बोले— एक तो चांदनी के चले जाबे को दुक्ख और दूसरो आगरा की पतली—पतली गलियन में वा को ढूंढवो को जतन! जेई कारणन से हमाई तबियत बिगड़ गई। अच्छे खासे होटल शमीम में ठहरे हते पर तबियत बिगड़वे से अपओं डेरा—डंगर उठाके बंगाली बाबू के हसपताल में छह दिना रहवे पड़ गओ!
नन्हे भैया —अच्छा इतेक तबियत बिगड़ गई?? नन्हे भैया के चेहरे पर एक साथ कई हैरानी भरे सवालिया निशान तैर गए।
बदामी लाल बोले—हओ! होटल में जब हते तो चांदनी को दुक्ख भुलावे के लाने खूब तंदूरी रोटी और चिकन टिक्का खाओ। वासे हमें अजीरण हो गओ। जब वा रात को चैन नई पड़ो और पेट के साथ सीने में दरद होन लगो तो अगले दिना होटल वारे से कौनउ ढंग के डाकधर को पता—ठिकाना पूछो तो बाने बंगाली बाबू के हसपताल को नाम लओ। हम फौरन हसपताल भागे। अब हसपताल का हतो! जो लगो कि सीधे नरक में आ गए। एक तो हम चौथी तक पढ़े और तुमाई भौजाई तीसरी तक! हसपताल के सारे बोरड अंगरेजी में! हमें कछु समझई में नई आओ! फिर एक नौजवान से सब बात पूछी तो पतो चलो कि पहले पांच सौ रुपइया को चढ़ावा चढ़ाने पड़ है तब डाकधर साब के दरसन हुइएं। अब का करते! दरद से परेसान हते। चढ़ावा दओ। रसीद—कट्टा कटवाओ। फिर कतार में ठांड़े रहे। पूरे एक घंटा बाद नंबर आओ।
क्रमशः (काल्पनिक कहानी )