रचनाकार : पंकज शर्मा “तरुण “, पिपलिया मंडी (म. प्र)
चलो उनको जगायें हम (गीतिका)
यहां सोए हुए हैं जो चलो उनको जगायें हम।
हमीं से है वतन खुशहाल यह सब को बतायें हम।।
उजड़ता जा रहा गुलशन किन्हीं नादान लोगों से।
बहा कर प्रेम की गंगा पुनः इसको बनायें हम।।
करें जो बात उल्टी ही मजे ले कर विदेशों में।
बुझा जो ज्ञान का दीपक उसे फिर से जलायें हम।।
गरीबी से जो पीड़ित हैं धरातल पर पड़े अपने।
मदद उनकी करें सब मिल चलो ऊंचा उठायें हम।।
अगर जागे नहीं जो सो रहे तो साथ रोना है।
प्रभाती राग गा- गा कर मुहल्ले को सुनायें हम।।
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बड़े बोल मत बोल (घनाक्षरी मात्रिक छंद)
बड़े बोल मत बोल,बातों में न विष घोल।
अब यहां सब लोग, चतुर सुजान है।।
गधे को न घोड़ा कह,फुंसी को न फोड़ा कह।
आजकल सबको ही,इतना तो ज्ञान है।।
आंखों में शरम नहीं, दिखता धरम नहीं।
इस पर तुर्रा यह, तुम्हें नहीं ध्यान है।।
जपो सब राम नाम,बने तभी सारे काम।
भूत -प्रेत भाग जाएं ,साथ हनुमान हैं।।
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सपने देखो रात दिन (छंद – कुंडलिनी )
सपने देखो रात दिन,यह सबका अधिकार।
अक्सर होते हैं सदा, जीवन में साकार।।
जीवन में साकार, लगेंगे फिर सब अपने।
हो सफेद या श्याम ,लगें सतरंगी सपने।।
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