रचनाकार : शिखा तैलंग
दुखीलाल — वो ऐसे कि देखो कि महेंद्र अंकल कह रहे है ना मुँह छुपा के जियो यानी अपने मुँह को छिपा कर मत जियो लेकिन यदि किसी के चेहरे पर दाग—धाब्बे हों तो? यह लाइन सुनकर मुझे अपनी श्रीमतीजी फूल कुमारी के चेहरे का बड़ा सा मस्सा याद आ जाता है। जिसको लेकर कई किस्से हो चुके हैं।
जब भी मैं उसका चेहरा घूंघट उठाकर देखता हूं मेरी सारी तमन्नाएं सारे अरमान आंसुओं की धार में बह जाते हैं। फिर महेंद्रजी आगे कहते हैं— ना सर झुका के जियो! यानी सर झुका के नहीं जीना है। पर नाई और भगवान के सामने तो सर झुकाना ही होता है। अगर नाई के सामने आप सर नहीं झुकाओ तो हो सकता है कि वह बालों के साथ सर को भी कलम कर दे! फिर भगवान तो सर्वशक्तिमान होते हैं अगर अपन ने उनके सामने सर नही झुकाया तो वे ऐसा श्राप दे सकते हैं जो कि सात जनम तक नहीं छूटेगा! आगे की लाइन में भी जबर्दस्त पेंच है! मेरा मानना है कि जब गम हो तो रोना चाहिए, मुस्कुराना नहीं चाहिए। जरा सोचिए किसी के बाप का निधन हो गया तो क्या मुस्कराना उसे शोभा देगाध्
मैं उनके उद्गगार सुनकर हैरान रह गई। मैंने दांतों तले अंगुलियां दबा ली! मैंने उनकी जबर्दस्त निगेटिव सोच को मन ही मन प्रणाम किया। फिर मैंने थोड़ा विषयांतर करते हुए कहा। दुखीलाल जी सत्तर के दशक के इस गाने के बारे में क्या खयाल है —
अरे भंग का रंग जमा हो चकाचक फिर लो पान चबाय
आ उम् उम्..आ हा
अरे ऐसा झटका, लगे जिया पे
पुनर जनम होई जाय
दुखीलाल— अरे बहना! कौन से गाने के बारे में पूछ लिया! यह गाना नौजवानों को बरगलाने वाला है। एक तो जबर्दस्त मेहनत करो — भंग का रंग जमाने में, फिर बकरी की तरह पान को चबा—चबा कर चूरा बनाओे! इसके बाद जिया यानी हार्ट पर झटका यानी हार्ट अटैक् झेलो! फिर पुनरजनम होने का इंतजार करो! तौबा—तौबा! यानी एक पान चबाने से पूरी एक जिंदगी तबाह बरबाद हो जाएगी!हे भगवान! पता नहीं यह गाना कैसे इतना चल गया! इसको सुनकर मुझे तो दो साल तीन महीने सत्रह दिन पड़े मेरे दिल के दौरे का खयाल आने लगता है!
मैं समझ गई कि इस मानुष पर निगेटिव थिंकिंग इतनी हावी है कि उसे हर चीज हैवी नजर आती है। फिर मेंने सोचा कि चलो उनका मूड बदला जाए। अत: मैंने इस रोमांटिक गाने के बारे में उनके खयाल पूछे —
आंखों में बसे हो तुम, तुम्हें दिल में छुपा लूंगा
जब चाहूँ तुम्हें देखूँ, आईना बना लूंगा
वे बोले — ऐसा लगता है कि लिखने चाले यह गाना भांग के नशे में लिख दिया। अरे! धरती पर रहने को जगह कम पड़ रही थी जो किसी को प्रेमी ने आंखों में बसा लिया।
क्रमशः
(काल्पनिक रचना )
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