चैप्टर-1
दोपहर में दीपा चतुर्वेदी अपनी किचन में बरतन मांजने में लगी थी कि तभी उनके मोबाइल फोन पर रिंगटोन बज उठी – पिया गए रंगून, वहां से किया है टेलिफून, तुम्हारी याद सताती है यह रिंगटोन सुनकर वे समझ गईं कि उनके पति रजत चतुर्वेदी का फोन है जो कि फिलहाल आफिस गए हुए हैं।
रिंग टोन सुनकर उनकी धड़कनें बढ़ गईं कि पता नहीं क्यों रजत ने फोन लगाया है? उन्होंने साड़ी के आंचल से हाथ पोंछकर धड़कते दिल के साथ गैस चूल्हे के बगल में रखा फोन उठाया और बैचेनी भरे स्वर में पूछा- हैलो! क्या हुआ?
दूसरी ओर से शांत आवाज में मिले जवाब से उन्हें बहुत सकून मिला। रजत ने नरम आवाज में कहा – क्या बात है, डियर? एैसी घबराई हुई क्यों हो? अरे, मैंने तो एक जरूरी संदेश देने के लिए फोन लगाया था।
दीपा – जी, बताइए!
रजत – वो मुझे बॉस अनवर खान के साथ अर्जेंट टूर पर आज दिल्ली निकलना है। शाम 7 बजे की फ्लाइट से। मुझे अपना बैग चाहिए होगा।
दीपा – वो मैं कैसे भिजवा दूं? आप कहें तो ऑटो में बैठकर मैं आ जाऊं और आपको बैग दे आऊं ।
रजत – तुम तो वैसे भी घर का काम-काज निपटाते-निपटाते थक गई होगी। मेरा बैग पैक किया हुआ तो रखा ही है। बस, ऐसा करो कि सपना वह बैग मुझे दे जाए।
दीपा – ठीक है, मैं सपना से बात कर लेती हूं। अभी दो मिनट बाद मैं फोन लगाती हूं।
यह कहकर दीपा ने फोन रख दिया और वह अपनी बेटी सपना से बात करने के लिए उसके कमरे तक भागी-भागी पहुंची। सपना उस समय अपने कॉलेज से मिले एक असाइनमेंट को पूरा करने में लगी हुई थी।
वह मम्मी को ऐसे भागकर आते हुए देखकर चौंक गई। उसने घबराए स्वर में पूछा – क्या बात है ममा! आप इतनी परेशान क्यों दिख रही हैं?
दीपा – बेटा! वो पापा का फोन आया था। उन्हें अर्जेंट टूर पर दिल्ली जाना है। उन्हें अपना बैग चाहिए। अब समस्या यह है कि ऑफिस का टाइम पूरा होने से पहले उन्हें अपना बैग चाहिए। शाम 7 बजे उनकी दिल्ली की फ्लाइट है। मुझे चिंता यह है कि ऑफिस अपने घर से कोई दस किलोमीटर दूर है और दोपहर में ऑटो वगैरह मिलने मुश्किल होते हैं। तो तुम यह बैग लेकर कैसे उनतक पहुंचोगी?
सपना – बस, इतनी सी बात!अरे ममा, पापा तो कार से अपने आफिस गए हैं लेकिन उनकी बाइक अपनी गैरेज में रखी है न , मैं उसपर बैठकर चली जाउंगी। पापा को उनका बैग दे आउंगी।
दीपा – तुम्हें बाइक चलाना आता है?
क्रमशः
(काल्पनिक कहानी)