रचनाकार : शबनम मेहरोत्रा, कानपुर
बात सन् 1961 की है , मदन महल जबलपुर ।
छोटा स्टेशन से एक मील दूर नेपियर टाईम मेरे पड़ोस में पॉंच घर छोड़ के लबे सड़क मेन रोड पर पहला मकान नम्बर 1375 श्री भुवनलाल मेहता का घर था ,1000 की कोठी में ही पीछे की तरफ़ आटा चक्की लगाई हुई थी। उस जमाने में सभी कनस्तर में गेहूं व चना ले जाकर पिसवाया करते थे ।
घर की बॉन्ड्री वॉल पर दूकान थी जो किराये पे दे रखी थी जो कम्पट , टॉफ़ी व जनरल मर्चेंट की थी ।
मेरा नौकर बैजू भी सिर पर 16 किलो का टिन सप्ताह में दो बार ले जाता कारण साझा परिवार । नम्बर आने के इंतज़ार भी करता तो लेबर व नौकर से दोस्ती हो गई ।
एक दिन ताई जी व माँ ने बैजू को डाँटा कि घर में मेहमान आए हैं और तू तीन घंटे में बेसन पिसवा कर लौटा है ।
बैजू- लाला जी बीमार हैं, उनका बड़ा बेटा ओम प्रकाश बड़े ग़ुस्से वाला है । मैंने कहा भी भैया आपके पड़ोस में सेठ साहब के घर से आया हूँ घर पर मेहमान आये हैं जल्दी पीस दें ।
ओम प्रकाश- ग़ुस्से में चुपचाप बैठे रहो पहले सबका आटा पीस जाये फिर ही चना पिसेंगे ।
बहूजी इसीलिए देर लगी ।
ताई – कितने लड़के हैं लाला जी के ?
बैजू – ये बड़ा ओम प्रकाश शादीशुदा है एक छोटा बच्चा हैं ।
दूसरा लड़का पन्द्रह साल का स्कूल में पढ़ता है व एक लड़की जो विवाहित है ।
ताई जी – अच्छा ठीक है अब काम करो ।
बैजू – पर बहूजी अक्सर बाप-बेटे में पैसों को लेकर झगड़ा होता है ।
ताई – मतलब ?
बैजू- उनके नौकर बताते हैं लाला जी काम तो पूरा कराते हैं पर बेटे को ज़रूरत के भी पैसे नहीं देते । बहुत कंजूस हैं और बीजी तो हिलती नहीं पर बहू सवेरे जल्दी उठकर रसोई में खाना बना कर सबके कपड़े धोकर चौका बर्तन करती है सारा दिन काम में लगी रहती है यहाँ तक कि बच्चे को भी दूध पिलाने का टाइम नहीं मिलता ।
ताई – अरे तो झाड़ू—पोछा कौन करता है?
बैजू – उसके लिए तो नौकरानी है । वही तो अंदर की बात बताती है ।
ताई – ओह
बात आई गई हो गई ।
तीन महीने बाद –
मैं और मेरी बहनें स्कूल से रिक्शे से वापस घर आ रहे थे । मोड़ पर पहुँचते ही रिक्शावाले ने रिक्शा धीमा कर बोला मेहता जी के घर पर इतनी भीड़ ! लगता है कुछ हादसा हुआ है।
क्रमश:
(काल्पनिक रचना)
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Conflict between father & son
Son angry
Crowd at gate
Nice suspense built
Anxiety to read next chapter
Good beginning
👌🏾👍🏾🤔