रचनाकार : शिखा तैलंग
जब गिरीश मिला तो मैं उसे अपने घर के पास कॉफी हाउस में ले गया। थोड़ी—बहुत इधर—उधर की बातें करने के बाद मैंने पूछा — यार! अपन लोग करीब 13 साल बाद मिल रहे हैं। इस बीच कितने मौसम आए—गए जिंदगी के कितने रंग हमने देखे पर तूने तो कामयाबी की नई इबारत ही लिख दी। बता न कैसे हुआ यह सब?
गिरीश बोला— वसंत! इसका सारा श्रेय मेरे पिता द्वारा छोड़ी गई विरासत तथा मेरी सेल्स टीम को जाता है। मेरे पिता का जब निधन हुआ था तो उनके खाते में केवल 10 हजार रुपये जमा थे। मुझे उनके मृत्यु उपरांत के तमाम संस्कार भी करने थे। उस समय मैंने प्रतिज्ञा की थी चाहे जो हो जाए न तो मैं किसी उधार लूंगा और न ही पूरी खून—पसीने की कमाई को व्यर्थ में गवाउंगा। मैंने कम से कम खर्च में उनकी अंत्येष्टि व उसके बाद के संस्कार निपटाए। फिर आगे अपने जीवन—यापन के लिए यह फैक्टरी लगाने की सोची। प्रारंभिक दो सालों में मेरे जीवन व कारोबार में काफी उतार—चढ़ाव आए पर न मैं घबराया न ही अपनी टीम का मनोबल गिरने दिया। फिर मुझे लगा कि मेरा काम बढ़ रहा है। आसपास के मार्केट पर पकड़ बन रही है तो मैंने अपना कारोबार बढ़ाने के लिए सेल्स ऐंड मार्केटिंग टीम का पुनर्गठन किया। मैंने यह टीम चिमन गुप्ता की अगुवाई में बनाई। वह बड़ा ही नेक तथा इंटेलिजेट बंदा है।
मैंने पूछा — चिमन ने ऐसा क्या किया कि तुम्हारी फैक्टरी दिन दूनी रात चौगुनी प्रगति करने लगी?
गिरीश— बस, ये समझो चिमन मेरे लिए बहुत बड़ा सहारा बन गया है। उसकी मार्केटिंग स्ट्रेटेजी जबरदस्त रहती है। उसकी प्रतिभा को मैंने इंटरव्यू के दौरान ही पहचान लिया था।
मैं— अच्छा?
वसंत — हां दोस्त! मुझे अच्छी तरह से याद है जब मैंने तीन साल पहले सेल्स ऐंड मार्केटिंग टीम के हेड के इंटरव्यू के लिए नौजवानों को बुलाया था तब कोई 10 लोग इंटरव्यू देने आए थे। मैंने इन सबसे एक ही सवाल किया था कि यदि गंजे आदमियों के शहर में आपको हमारे प्रोडक्ट बेचने हैं तो आप क्या करेंगे? दस में से नौ बंदों ने अनग—अलग जवाब दिए। पर जो जवाब मुझे सबसे ज्यादा पसंद आया वह चिमन का ही था।
मैं — क्या था वह जवाब?
गिरीश के माथे पर थोड़ी लकीरें आईं और फिर वह तुरंत मुस्कराकर बोला— चिमन ने कहा कि वह गंजे आदमियों की बीवियों को कंघे बेचेगा! मैं समझ गया कि बंदा होनहार और काबिल है इसे एक मौका देना चाहिए। फिर इसके बाद जो कुछ हुआ उससे तुम वाकिफ हो!
मैं — वाह भई! जवाब सुनकर समझ में आ गया कि चिमन वास्तव में बेहद होशियार है। सच है यार! जब टीम में अच्छे और काबिल लोग भर्ती किए जाएं तो टारगेट अचीव करने में कतई मुश्किल नहीं होती।
इसके बाद गिरीश और मैंने एक—एक कॉफी पी और बटर टोस्ट का आनंद लिया। फिर गिरीश मुझे अपनी फैक्टरी के कंघों का एक गिफ्ट सेट भेंट करके चला गया। वे कंघे मैंने अपने पास सहेज कर रखे हैं और गिरीश की कामयाबी की दास्तान सुनाते रहते हैं।
(काल्पनिक रचना )