(AI generated Creation)
प्रस्तुति: शिखा तैलंग, भोपाल
भारतीय संस्कृति में रिश्तों का विशेष महत्व रहा है। लेकिन समय-समय पर यह प्रश्न भी उठता है कि कौन वास्तव में अपना है? किसे ‘बांधव’ या सच्चा संबंधी कहा जाए? इस संदर्भ में संस्कृत का यह श्लोक अत्यंत प्रासंगिक है-
उत्सवे व्यसने चैव दुर्भिक्षे राष्ट्रविप्लवे।
राजद्वारे श्मशाने च यः तिष्ठति सः बान्धवः।
इसका अर्थ है — “उत्सवों में, विपत्तियों में, अकाल में, राष्ट्र संकट में, राजदरबार में और श्मशान में जो साथ खड़ा रहे, वही सच्चा संबंधी है।” यह श्लोक रिश्तों की गहराई को परखने की कसौटी देता है, और भारतीय सामाजिक जीवन के विविध पक्षों पर गहरा प्रकाश डालता है। यह आर्टिकल हमने एआई की मदद से तैयार किया है। अत: इसमें व्यक्त विचारों व तथ्यों के प्रति शिविका झरोखा डॉट कॉम कोई जिम्मेदारी नहीं लेती है —
1. श्लोक का भावार्थ और सामाजिक प्रासंगिकता
यह श्लोक छह महत्वपूर्ण परिस्थितियों को रेखांकित करता है:
- उत्सव (सुख के समय)
- व्यसन (विपत्ति या कठिनाई)
- दुर्भिक्ष (अकाल या आर्थिक तंगी)
- राष्ट्रविप्लव (राष्ट्र संकट)
- राजद्वार (सत्ता के समक्ष खड़ा होना)
- श्मशान (मृत्यु और अंतिम विदाई)
इन सभी परिस्थितियों में जो व्यक्ति आपके साथ खड़ा रहता है, वही आपका वास्तविक मित्र, रिश्तेदार, या सच्चा साथी है। भारतीय संदर्भ में, जहां रिश्तों में भावनात्मकता, कर्तव्य और अपनापन प्रधान होता है, वहां यह श्लोक अत्यंत यथार्थवादी दृष्टिकोण प्रस्तुत करता है।
2. उत्सव — सुख के समय साथ देना
भारतीय समाज में विवाह, त्योहार, नामकरण संस्कार जैसे अवसरों पर पूरे परिवार का साथ रहना एक परंपरा रही है। लेकिन आधुनिक जीवनशैली में यह दृश्य बदल गया है। कुछ लोग केवल दिखावे के लिए आते हैं, कुछ स्वार्थवश, और कुछ तो दूर ही रहते हैं। जो बिना किसी स्वार्थ के केवल खुशी में शरीक होने आते हैं, वे सच्चे बान्धव होते हैं।
3. व्यसन — दुख की घड़ी में साथ खड़ा होना
जब व्यक्ति पर दुख का पहाड़ टूटता है — जैसे नौकरी जाना, बीमारी, अपमान या मानसिक तनाव — तब अधिकतर लोग धीरे-धीरे दूर होने लगते हैं। भारतीय परिवार व्यवस्था में यह देखने को मिलता है कि संकट में आत्मीयजन भी किनारा कर लेते हैं। लेकिन जो लोग उस समय संवेदना, सहारा और साहस के रूप में खड़े रहते हैं, वही असली अपने होते हैं।
उदाहरण: कोविड-19 महामारी के समय जब हजारों लोग अकेले अस्पतालों में थे, उस समय बहुत से तथाकथित रिश्तेदारों ने दूरी बना ली। वहीं कुछ दोस्तों, पड़ोसियों और समाजसेवकों ने उनके लिए देवदूत बनकर सेवा की — यही वह लोग हैं जिनका इस श्लोक में उल्लेख है।
4. दुर्भिक्ष — आर्थिक संकट में साथ रहना
जब परिवार आर्थिक तंगी से गुजरता है, तब कई रिश्तेदार या समाज के लोग ताने मारते हैं या दूरी बना लेते हैं। भारत जैसे देश में बेरोजगारी और गरीबी एक बड़ी समस्या रही है। इन परिस्थितियों में जो व्यक्ति बिना किसी स्वार्थ के मदद करें, मानसिक सहारा दें, वही सच्चे बांधव माने जाते हैं।
उदाहरण: ग्रामीण भारत में जब किसानों की फसलें खराब हो जाती हैं, तब जो परिवारजन कंधे से कंधा मिलाकर उनका साथ देते हैं, वे वास्तव में संबंधों की गरिमा को निभाते हैं।
क्रमश:
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