(AI generated Creation)
प्रस्तुति: शिखा तैलंग, भोपाल
उदाहरण: ग्रामीण भारत में जब किसानों की फसलें खराब हो जाती हैं, तब जो परिवारजन कंधे से कंधा मिलाकर उनका साथ देते हैं, वे वास्तव में संबंधों की गरिमा को निभाते हैं।
5. राष्ट्रविप्लव — देश संकट में कौन साथ खड़ा है?
भारत विभाजन, आपातकाल, या युद्धकाल जैसी स्थितियों में यह स्पष्ट देखा गया है कि कौन नागरिक, नेता, या मित्र देश और समाज के लिए खड़े होते हैं और कौन स्वार्थ के कारण चुप रहते हैं या पलायन कर जाते हैं।
उदाहरण: 1947 के विभाजन के समय बहुत से लोग अपने घर-परिवार छोड़कर सीमा पार चले गए। वहीं, कुछ लोगों ने संकटग्रस्त परिवारों को शरण दी, उन्हें दोबारा जीवन शुरू करने का अवसर दिया — वही राष्ट्र और मानवता के सच्चे बान्धव थे।
6. राजद्वार — न्याय और सत्ता के समक्ष साथ देना
जब व्यक्ति किसी कानूनी संकट या सरकारी प्रक्रिया से गुजर रहा होता है, तब कितने लोग उसके समर्थन में खड़े होते हैं? जब किसी को झूठे आरोपों में फंसाया जाता है, तब कौन उसकी सच्चाई के लिए लड़ता है? आज के भारत में न्याय के लिए लंबी लड़ाइयाँ लड़नी पड़ती हैं। ऐसे में जो लोग पीड़ित के साथ खड़े रहते हैं, वही सच्चे साथी हैं।
7. श्मशान — अंतिम यात्रा में कौन आता है?
यह सबसे भावनात्मक पक्ष है। मृत्यु के बाद व्यक्ति के साथ केवल वही लोग श्मशान जाते हैं जो वास्तव में उससे जुड़े होते हैं। भारत में आज भी यह कहा जाता है कि अंतिम संस्कार में शामिल होना सच्ची श्रद्धांजलि है। लेकिन आज की भागदौड़ वाली जिंदगी में यह दुर्लभ होता जा रहा है। जो लोग अंतिम यात्रा में शामिल होते हैं, कंधा देते हैं — वे अपनेपन की गहराई को दर्शाते हैं।
8. श्लोक की आज की पीढ़ी में उपयोगिता
आज जब रिश्ते “कॉल” और “चैट” तक सीमित हो गए हैं, यह श्लोक आत्ममंथन का माध्यम बन सकता है। हम यह सोचें कि हम खुद कितनों के साथ इन छह परिस्थितियों में खड़े होते हैं? और कितने लोग हमारे साथ खड़े रहते हैं?
श्लोक केवल दूसरों को परखने का नहीं, खुद को आंकने का भी एक आईना है।
9. सामाजिक जागरूकता और शिक्षा में इसका स्थान
भारतीय शिक्षा व्यवस्था में यदि इस श्लोक को व्यवहारिक शिक्षा से जोड़ा जाए, तो यह बच्चों और युवाओं को नैतिकता, सहानुभूति और सामाजिक उत्तरदायित्व का पाठ पढ़ा सकता है। इससे ‘बांधवता’ की संस्कृति फिर से पनप सकती है।
10. निष्कर्ष
“उत्सवे व्यसने चैव…” यह श्लोक हमें सिखाता है कि सच्चे संबंध केवल शब्दों और दिखावे से नहीं बनते, बल्कि व्यवहार, सहानुभूति और साथ निभाने से बनते हैं। भारतीय समाज की यह परंपरा रही है कि हम दुःख-सुख में एक-दूसरे का साथ दें। परंतु आज के समय में यह मूल्य खोता जा रहा है। हमें इस श्लोक को जीवन में अपनाकर अपनी संस्कृति, रिश्तों और समाज को मजबूत बनाना चाहिए।
वह बांधव नहीं जो केवल नाम का हो,
सच्चा वही जो हर परीक्षा में साथ हो।
Loved the quote in the end.