चैप्टर—2
गीतिका— अगर हम एक्सीडेंट की आशंका से दुबककर घर में ही बैठे रहे तो क्य सब कामकाज ठप नहीं हो जाएगा?
गीतिका की बात सुनकर गोविंद को लगा कि यह बहस और ज्यादा खिंचेगी। उन्हें रजाई में दुबक कर कुछ देर और पड़े रहने का मन हो रहा था। अत: वे इस बातचीत को विराम देने की गरज से बोले — बेटा! जो कहा सो मान जाया करो। जीवन बड़ा अनमोल है। एक बार हाथ से निकल गया तो फिर नहीं आता। आज जो दुर्घटनाएं खराब मौसम की वजह से हो रही हैं वे कल तुम्हारी जिद के कारण तुम्हारे साथ भी हो सकती हैं। तुम्हें तो ऐसे मौसम में बेहद सतर्क रहना चाहिए और इंदौर से बाहर हरगिज नहीं जाना चाहिए।
गीतिका ने देखा कि उसके मम्मी—पापा में से कोई भी उसकी बात सुनने को तैयार नहीं है तो वह मोर्चा छोड़कर सुबकते हुए अपने कमरे में चली गई। गोविंद रजाई में घुसने के लिए प्रस्थान करने ही वाले थे कि गीता ने उन्हें टोक दिया — कहां चले साहब! अरे इस समस्या को सुझलाओ।
गोविंद — यह सुबह—सुबह का हल्ला—गुल्ला सुनकर मेरा माथा खराब हो रहा है। तुम ऐसा करो मेरे लिए एक बढ़िया सी चाय बना दो। फिर चाय मीटिंग के समय हम सोचेंगे कि गीतिका को टूर पर भेजा जाए या नहीं।
गीता —ठीक है। मैं चाय चढ़ा देती हूं।
गोविंद को मानो मनचाही मुराद मिल गई। वे वापस जाकर रजाई में घुस गए। गीता गैस चूल्हे पर चढ़ाई पतीली में खौलते पानी की भाप से हाथ सेंकते हुए चाय बनाने में लग गई।
करीब 15 मिनट बाद गीता एक ट्रे में चाय—नाश्ता लेकर गोविंद के पास आ गई।
गीता — ये लो तुम्हारी फेवरिट नमकीन के साथ गरमा—गरम चाय!
गोविंद ने रजाई में से अपने हाथों और चेहरे को बाहर निकाला और अंगड़ाई लेते हुए पलंग पर बैठ गए। वे बोले — ऐसी सर्दी में चाय—नाश्ते का मजा कुछ और ही है। पर सुबह हुई गरमा—गरम बहस का मुद्दा तो सुझलाना ही पड़ेगा।
गीता — हां, गीतिका भी ज्यों—ज्यों बड़ी होती जा रही है त्यों—त्यों वो अपने से पहले से कहीं ज्यादा बहस करने लगी है। अब इस टूर के चक्कर में अपने घर का माहौल ओेर खराब हो गया। मुझे उसकी बेहद चिंता रहती है।
गोविंद ने चाय के एक दो घूंट लिए तो जैसे उनके दिमाग की बत्ती जल गई। वे बोले— यह सारी आग कॉलेज वालों की लगाई हुई है। मैं इस बारे में कॉलेज वालों से ही बात कर लेता हूं।
गीता— हां यह ठीक रहेगा। वो गीतिका कह रही थी कि इस टूर की जिम्मेदारी मृणालिनी मैडम को दी गई है। उनका फोन नंबर मेरे पास सेव है। आप उन्हीं से बात कर लीजिए।
गीता ने फोन का स्पीकर खोल दिया ताकि वह भी हो रही बात को सुन सके।
गोविंद ने चाय के घूंट के साथ नाश्ता करते हुए मृणालिनी मैडम को फोन लगाया। उधर से एक मधुर सी आवाज आई — जी नमस्कार! मैं मृणालिनी बोल रही हूं। आप कौन?
गोविंद — गुड मॉर्निंग मैम! मैं गीतिका का पापा गोविंद बोल रहा हूं। मैडम इस बार तो सर्दी जमकर परेशान कर रही है। कोहरे ने कहर ढहाया हुआ है। ऐसे में मैंने सुना है आप स्टूडेंट्स को जयपुर टूर पर ले जा रहे हैं। क्या यह बेहद रिस्की नहीं है?
मृणालिनी — जी! लेकिन टूर तो गुरुवार को है, आप अभी से क्यों आशंकित हैं?
क्रमश:
(काल्पनिक कहानी)