चैप्टर—1
जनवरी की कड़कड़ती ठंड की एक सर्द सुबह। गोविंद चतुर्वेदी को रजाई से बाहर निकलने का मन ही नहीं हो रहा था। लेकिन उनकी टीनएजर बिटिया गीतिका की मम्मी गीता से चल रही गरमा—गरम बहस ने उन्हें रजाई के बाहर से निकलने को मजबूर कर दिया। वे कुछ झुंझलाहट भरे स्वर में बोले — क्या गीतिका? यह क्या लगा रहा है संडे की सुबह—सुबह? मुझे एक ही दिन तो हफ्ते में मिलता है आराम के लिए और तुम दोनों सुबह—सुबह हल्ला—गुल्ला करके क्यों मेरा माथा खराब कर रही हो?
गीता — अब आप ही समझाइए न इसे! कह रही है कि ऐसी भयानक सर्दी में उसे कॉलेज वाले दो दिन के सेमिनार के लिए जयपुर ले जा रहे हैं बस से! अब कोहरे ने तो कैसी नाक में दम कर रखी है। यहां इंदौर में बीस मीटर से आगे का नहीं दिख रहा। मैंने कल के अखबार में पढ़ा था कि शाजापुर में घने कोहरे से सही नहीं दिखने के कारण एक ट्रक ड्राइवर ने दूसरी तरफ से आ रही बस को ठोक दिया। नतीजतन 12 लोग मर गए और 25 घायल हो गए।
गोविंद ने यह बात सुनी तो उनके माथे पर बल पड़ गए। वे बोले — बेटा, वो खबर तो मैंने भी पढ़ी थी। सच में इन दिनों कोहरे ने कोहराम मचा रखा है। मैंने कल रात को टीवी पर देखा भी था कि यहां से जयपुर तक कोहरे का जबर्दस्त प्रकोप चल रहा है। कई ट्रेने देर से चल रही हैं और यहां तक कि फ्लाइट्स भी प्रभावित हुई हैं। फिर सड़क का रास्ता तो और भी जानलेवा साबित हो रहा है। तुम्हें सेमिनार में नहीं जाना चाहिए।
गीतिका को पापा की बात अच्छी नहीं लगी। वह मुंह बिचकाकर बोली — पापा! उस सेमिनार में मालूम है शाहरुख खान और चेतन भगत भी आ रहे हैं। इतने बड़े—बड़े लोगों को मुझे करीब से देखने का मौका मिलेगा। फिर वह सेमिनार तो चार दिन बाद है। कॉलेज वालों ने पंद्रह दिन पहले से बस आदि की बुकिंग तथा अन्य व्यवस्थाएं कर रखी हैं। यदि मैंने ऐसी जानी—मानी हस्तियों से रूबरू होने का मौका गंवा दिया तो मुझे जिंदगी भर अफसोस रहेगा!
गोविंद — बिटिया! समझा करो! मौसम न तो शाहरुख को जानता है और न ही चेतन को! कुदरत के आगे इंसान बेबस हो जाता है। मुझे समझ में नही आ रहे ये कॉलेज वालों को भी क्या सूझी थी जो ऐसे मौसम में इस टूर का प्लान बना लिया। पता नहीं बेटी, रास्ते में क्या मुसीबत आ जाए कौन जानता है।
गीता ने डबडबाई आंखों के साथ बुझे स्वर में कहा — तुम हमारी इकलौती बेटी हो। तुम्हें तो जानबूझकर मक्खी नहीं निगलनी चाहिए। ऐन टाइम पर कॉलेज वालों से कह देना कि मेरी तबियत खराब है। तुम ऐसा कह के खराब मौसम में होने जा रही इस ट्रिप से बच जाओगी।
गीतिका — मम्मी—पापा! मैं मानती हूं कि मौसम खराब है। पर इसके बावजूद लोग हिम्मत करके सफर करते ही हैं। अब जो ड्राइवर बस चलाता है वो चलाता ही है, जो ड्राइवर ट्रेन चलाता है वो खराब मौसम के बावजूद ड्यूटी बजाता ही है और जो पायलट प्लेन उडाता है वह उड़ता ही है। अगर हम एक्सीडेंट की आशंका से दुबककर घर में ही बैठे रहे तो क्य सब कामकाज ठप नहीं हो जाएगा?
क्रमश:
(काल्पनिक कहानी)