रचनाकार : सुनीता मिश्रा, देहरादून, उत्तराखंड
प्रज्ञा तेज तेज कदमों से चलती हुई पोस्ट ऑफिस में प्रवेश करती है।
आज RD जमा करने का लास्ट दिन था। वरना कल से फाइन लग जाएगा। कई कारणों से वह इस बार जल्दी पोस्ट ऑफिस नहीं आ पाई थी ऊपर से इतनी तेज धूप आने की हिम्मत नहीं कर पा रही थी!
खैर आज बाकी दिनों के मुकाबले पोस्ट ऑफिस मैं भीड़ नहीं थी, लाइन नहीं लगी हुई थी, काउंटर खाली पड़ा था उसने जल्दी से डिपॉजिट फॉर्म भरा और RD जामा कर वापस मुड़ने को हुई तभी एक आवाज आई।
“प्रज्ञा!”
पीछे मुड़कर उसने देखा कोई जाना पहचाना चेहरा उसे दिखाई नहीं दिया फिर वह आगे बढ़ने लगी, तभी फिर से वही आवाज कानों में पड़ी।
“प्रज्ञा!”
इस बार उसने नजर घूमा कर ध्यान से चारों तरफ देखना शुरू किया।
सनग्लास लगाए हुए एक आकर्षक व्यक्तित्व वाला पुरुष एक बड़ी सी गाड़ी के गेट को पकड़े खड़ा था शायद गाड़ी में बैठेते-बैठेते रुक गया था।
प्रज्ञा ने पहचानने की कोशिश की किंतु पहचान पाने में उसने खुद को असमर्थ पाया।
तभी वह पुरुष तेजी से चलते हुए प्रज्ञा के पास आकर पूछा, ”तुम प्रज्ञा ही हो न? कैसी हो प्रज्ञा? पहचाना कि नहीं मैं आदेश हूं! याद आया कुछ? छावनी हाई स्कूल।”
प्रज्ञा की आंखों में अचानक एक चमक उभर आई।
”आदेश!तुम यहां कैसे?”
”और तुम तो बिल्कुल बदल गए हो।”
इस बीच आदेश ने सनग्लास आंखों से हटा लिया था।
प्रज्ञा गौर से आदेश को देख मुस्कुराई और बोली, ”हां आंखें बिल्कुल वही है बाकी चेहरा बदल गया हैं।”
”कैसे हो तुम? उसने फिर से आदेश से पूछा, ”और क्या कर रहे हो आजकल? “
”चलो कहीं बैठ कर बात करते हैं।” आदेश ने प्रज्ञा को देखते हुए बोला ।
”अरे नहीं फिर कभी मुझे देर हो रही है।” प्रज्ञा टालने के मकसद से बोली !
”25 साल बाद मिले हैं हम एक चाय तो साथ में बनता है आओ पास की इस कॉफी शॉप में काॅफी पीते हैं।”
ना चाहते हुए भी प्रज्ञा इनकार नहीं कर पाई ।
पोस्ट ऑफिस के बगल में बना कॉफी हाउस में वह आदेश के साथ जा बैठी ।
दो काफी का ऑर्डर देने के बाद आदेश ने प्रज्ञा की तरफ मुड़कर पूछा ”और बताओ कैसी हो, क्या करती हो कहां रहती हो? और तुम्हारे हस्बैंड क्या करते ?”
आदेश ने कई सवाल एक साथ कर दिए।
प्रज्ञा ने सकुचाते हुए कहा, ”बस पास में रहती हूं मैं गृहणी हूं और पतिदेव गवर्नमेंट ऑफिसर हैं। तुम अपने बारे में बताओ कुछ?”
”मैं आर्मी में डॉक्टर हूं और आर्मी क्वार्टर में रहता हूं। पिताजी का अकाउंट पोस्ट ऑफिस में है उसी को ट्रांसफर कराने के लिए आया था मेरी ट्रांसफर हो गई है इस शहर से और कल सुबह के फ्लाइट हम दूसरे शहर जा रहे हैं। आर्मी में सेलेक्ट होने के बाद मैं तुम्हारे गांव गया था पता चला तुम शहर में आगे की पढ़ाई कर रही हो। फिर दोबारा पढ़ाई पूरी होने के बाद गांव गया था तुम्हारे! इस बार पता चला कुछ दिन पहले ही तुम्हारी शादी हो गई थी। वह हमारा क्लासमेट राघव था वह मेरा मित्र था। उसी से मिलने के लिए तुम्हारे गांव जाते रहता था।” आदेश ने कहा!
“अब नहीं जाते हो क्या? राघव से मिलने?” प्रज्ञा ने पूछा।
क्रमश: