क कॉर्पोरेट गुरुजी थे। एक प्राइवेट कंपनी में काम करने वाले चार जाने-माने अफसर उनके चेले-चपाटी थे। ये चारों ही अपनी स्थिति, आय आदि से संतुष्ट नहीं थे। एक रविवार को इन्होंने गुरुजी के दरबार में हाजिरी लगाई। उन्होंने गुरुजी से सफलता का मंत्र मांगा। तो गुरुजी बोले – ‘कामना करो।’
इस बात को गुरु मंत्र मानकर ये लोग अपने-अपने हिसाब से अर्थ निकालने में लग गए। एक ने सोचा गुरुजी का मतलब है काम नहीं करो। वह जाकर अधिक से अधिक समय सोने में बिताने में व्यस्त हो गया।
दूसरे ने काम अर्थात वासना को त्यागने के रूप में लिया और उसने तमाम उल्टी-सीधी हरकतें छोड़ दीं। यहां तक कि अपनी गर्ल फ्रेंड तक से दुश्मनी पाल ली।
तीसरे ने समझा कि गुरुजी कुछ इच्छा करने को कह रहे हैं। उसने बहुत बड़ी लिस्ट बना ली और उसके अनुरूप जुट गया। वह दान-धर्म आदि में व्यस्त हो गया।
चौथे ने इसका यह अर्थ लिया कि क्या मना करूं। तो वह हर काम में ‘हां जी, हां जी’ करने लग गया। बस, बॉस की नजरों में वह चढ़ गया और बॉस उसको बिलकुल चैन ही नहीं लेने देते। ऑफिस का ज्यादा से ज्यादा काम उसी से कराने लगे। अत्याधिक काम से वह तनाव ग्रस्त रहने लगा और उसके स्वास्थ्य पर बुरा असर होने लगा।
कुछ समय बाद चारों अफसर फिर एक जगह मिले। सबने एक दूसरे अपने दुख-दर्द साझा किए। पहले ने कहा कि ‘मैं गुरुजी के कहे अनुसार सोने लग गया। अब तो इतना सोने लगा हूं कि दफ्तर में भी सो जाता हूं। अब रोज बॉस से खिट-खिट होती है। वे मुझे नौकरी से निकालने की धमकी देते हैं। समझ में नहीं आता कि क्या करूं!’ दूसरा बोला – ‘पहले मैं हर वीकेंड में मौज-मजा कर लेता था। पर अब सब छूट सा गया है। गर्लफ्रेंड से तो लड़ाई हो गई और वह मेरी शक्ल तक देखना पसंद नहीं करती।’
तीसरे ने कहा कि मैंने अपनी इच्छाओं की लिस्ट बना ली और उन इच्छाओं को पूरा करने की मशक्कत में दिन-रात जुटा रहता हूं। कुल मिलाकर न तो इच्छाएं खत्म होने का नाम ले रहीं और ना ही उनकी सूची। सच में यह गुरु मंत्र तो बेहद परेशानी वाला है।
आखिर में चौथा बोला- ‘बॉस ने बिलकुल ही मेरी जान खा रखी है। जब देखो तब बस काम ही काम!! मेरा तो जीना मुहाल हो गया इन गुरुजी के चक्कर में।’
जब सबने अपना-अपना दुखड़ा रो लिया तो पहले वाला अफसर बोला – ‘फिर से चलो गुरुजी के पास।’
इसके बाद एक दिन चारों गुरुजी के दरबार में हाजिर हो गए और चारों ने अपना दुखड़ा उन्हें सुनाया। यह सुनकर गुरुजी थोड़ा मुस्काराए और बोले – ‘प्रिय चेलो! आप लोग तो अपने-अपने मन से मेरे मंत्र का अर्थ निकाल कर अनर्थ कर बैठे। आप लोगों को ऐसा नहीं करना चाहिए। केवल शब्द नहीं उसमें निहित अर्थ पर भी ध्यान देना चाहिए। मेरा मतलब यह था कि आप इच्छा तो रखो पर उसे अपने पर इतना हावी मत होने दो कि जीना ही मुहाल हो जाए और नौकरी ही खतरे में पड़ जाए। मैंने जो गुरुमंत्र दिया था उसका वास्तविक मतलब आप लोग समझ नहीं सके। दरअसल, यह मंत्र यूनिवर्सल लॉ आफ अट्रेक्शन यानी विश्वव्यापी आकर्षण के नियम से प्रेरित है। इसके मुताबिक आप लोगों का जो भी टारगेट हो, उसे समय सीमा के साथ लिखकर एक जगह रख लेना चाहिए और रोज उसे देखकर अपने काम में जुटे रहना चाहिए ताकि वह टारगेट आप हासिल कर सकें। यह नियम बताता है कि जब भी हम कोई इच्छा करते हैं और शिद्दत से उसे पूरा करने में लग जाते हैं तो पूरी कायनात उसे हासिल करने में मदद करने लग जाती है। इससे हम अपने टारगेट को समय पर पूरा कर सकते हैं और अपनी जिंदगी को और बेहतर बना सकते हैं।
मोरल ऑफ द स्टोरी : विश्वव्यापी आकर्षण के नियम में विश्वास करते हुए अपने लक्ष्य की ओर योजनाबद्ध कदम बढ़ाएं। कामयाबी जरूर मिलेगी।
(काल्पनिक कहानी)