कहीं गुमनाम न हो जायें
=डाॅ. योगेश सिंह धाकरे “चातक” {ओज कवि}, आलीराजपुर म.प्र
कहीं गुमनाम न हो जायें,
साहित्य साधना मे जीने वाले।
गुनाहगार हम ही तो होगे,
उनका अनुशरण करने वाले।
राष्ट्रीय चेतना के स्वर को,
आज हम नमन करते है ।
राष्ट्रकवि के जन्मदिन को,
ही कवि दिवस कहते है ।
वो ही…साकेत व यशोधरा,
महाकाव्य का रचयिता था।
2 महाकाव्य,19 खंड़काव्य,
लिखने वाला ध्येयता था ।
राष्ट्रभक्ति का अलख जगाया,
भारत-भारती को लिखकर।
राष्ट्रकवि की उपाधि पाया वो,
महात्मा का सानिध्य पाकर।
यदि आप कवि हो… तो
इनको याद कर लिया करो।
इन्हें “जायज” हक…और
मेहनताना तो दे दिया करो।
रीयल हीरो रील मे नही,
साहित्यों मे मिलते है ।
मन वचन कर्म त्याग के,
पराक्रमों से बनते है ।।
शत् शत् नमन है राष्ट्रकवि
यारा मैं तुझे भूल नहीं पाऊँगा
–मनोज कुमार, गोण्डा, उत्तर प्रदेश
यारा मैं तुझे भूल नहीं पाऊँगा
जादू है जो तेरे मेरे नस . नस में
मेरे खयालों की दुनिया मेंए जो तू बसा
कैसे तुझे छोड़ दूँ जिन्दगी के हर हिस्से से
जो मेरे इश्क में तू ठहरा…
यारा मैं तुझे भूल नहीं पाऊँगा
आयेगी जो यादों की सौगाते
तो कैसे जाने दूँ इसे ठुकरा के
हर तरफ से जो तू जुल्म ढहाए हो
जो मेरे जेहन में आके तड़पाए हो
ये पल . पल के ज़हर कैसे पी लूँ
कैसे तेरे बिन तन्हा जी लूँ
होंगे कई यारा शहरों में
पर तेरे जैसा होंगे कहाँ
फूलों के खामोशी में भी
सुबह की अजानों में भी
कहीं एक भी जगह छोड़ा नहीं
जहाँ तुझे ढूँढा न हों,,,
यारा मैं तुझे भूल नहीं पाऊँगा
आती रहेगी तू मेरे ख्वाबों में
इश्क है जो तेरा मेरे स्वादों में
चख . चख के तुझमें होना चाहता हूँ
तेरी दुनिया में आना चाहता हूँ
कहीं खो न जाओ बार -बार सोचता हूँ
नजदीक आके फिर दूर जाता हूँ
क्या है ये जो तेरा हो नहीं पता हूँ
यारा मैं तुझे भूल नहीं पाऊँगा
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सुन लो पिया
-हेमन्त पटेल, भोपाल
धड़कन बोले है क्या? ये सुनलो पिया
आस तुमसे लगी, साँस तुमसे बंधी
न मिले तो ये नब्ज़, जम जाएगी
बिना तेरे, मेरी साँस थम जाएगी
तेरी भी कुछ सीमा है, मेरे भी हैं दायरे
भरोसा रख मुहब्बत पर, मिट जाएंगे फ़ासले
घटा में छिपके चाँद फ़ना नहीं होता
बदलों में कहाँ है सूरत रुकता
हेराँ तो वो कते हैं,
जो ख़ामोशी से चलते हैं।
पत्थर कहे उन्हें दुनिया,
पत्थर ही तराषे जाते हैं।
उनको न भाये अंजुमन,
वो ओट में दीप रखते हैं।
सजती है ख़ामोषी जिनके होंठों पे,
दिल में तूफ़ा रखते हैं।
ख़ुद से है उनकी मोसखी,
लबों पे मिश्री, ज़हन में इतिहास रखते हैं।
बेख़बर होना सबके बस की बात नहीं
सबको, अपनी छोड़ सबकी ख़बर होती है।
सब्र सब में हो ये भी कोई बात नहीं
सबको अपनी औक़ात पता होती है।
यूँ देखो तो आयतों में कोई बात नहीं
रब की नेमत भी बेख़ुदी में होती है।
कहने को कई बार, कुछ नहीं होता
और कभी . . .
बिन कहे काँच सी चुभन होती है।