रचनाकार : शिखा तैलंग
अहमदाबाद के शाही बाग इलाके में तीन पड़ोसी रहते थे – कपिल त्रिवेदी, रौनक शर्मा और करजी मनसुख भाई! कपिल नौकरी पेशा थे और कपड़े की एक मिल में सुपरवाइजर थे। रौनक शर्मा कालूपुर इलाके में चाय की दुकान चलाते थे और करंजी सेल्समैन थे निर्मल साड़ी एम्पोरियम में। इन तीनों की एक ही समस्या थी कि वे जो भी कमाते थे उसमें उनकी गुजर-बसर मुश्किल से हो पाती थी। फिर गृहस्थी का बोझ अलग था। बीवी- बच्चों सबकी जिम्मेदारी यही उठाते थे और कमाई के लिए अपने ही दम पर आश्रित थे। इनकम कम होने से और खर्चे ज्यादा होने से आए दिन परेशानियां खड़ी होती रहती थीं।
कपिल के सामने अपने बड़े बेटे तन्मय की आईटी काॅलेज की फीस भरने की समस्या थी। उसे इस माह की 10 तारीख तक 80 हजार रुपये बतौर सेमेस्टर फीस भरने थे। वे इस फीस की रकम का जुगाड़ करने के लिए अपनी मिल से सैलरी एडवांस लेने की सोच रहे थे। यद्यपि 30 हजार रुपये तो उनके पास थे पर बाकी 50 हजार रुपये का इंतजाम करने के बारे में सोच-सोच कर उनके पसीने छूट रहे थे। फिर तन्मय के बड़े होने के साथ उसके खर्चे भी बढ़ रहे थे। यारी.दोस्ती का भी चक्कर था। तन्मय जब भी अपने पापा से हाथ खर्च मांगता पापा कभी थोड़े.बहुत पैसे दे देते तो कभी उसे डांट-फटकार देते। इससे घर का माहौल भी तनावपूर्ण रहता था।
रौनक शर्मा की बीबी मालती को तेज गर्मी के मद्देनजर फ्रिज लेने की पड़ी थी। फिर उसकी पड़ोसन लता गोस्वामी ने 180 लीटर का ब्लू कलर का बढ़िया फ्रिज दसेक दिन पहले ही लिया था। उसे यह बात खटक रही थी कि लता ने तो फ्रिज ले लिया लेकिन वह क्यों नहीं ले पा रही। उसने अपने पति से जब फ्रिज लाने को कहा तो रौनक बोला – भागवान! मैं चाय की थड़ी चलाता हूं। एक तो मुझे लोन नही मिल सकता और दूसरे अपनी इनकम इतनी ज्यादा नहीं है कि एक और हाथी पालकर मैं अपने खर्चे बढ़ा लू। अब जो है जैसा है उसमें गुजर करो।
अब करंजी भाई के बारे में! उन्हें सेल्स मैन शिप करते हुए जब हर माह के आखिर में वेतन के अलावा सेल्स का कमीशन भी मिल जाता थाए तब तो बल्ले-बल्ले हो जाती थी पर अगले माह की 10 तारीख आते-आते ढाक के वही तीन पात! फिर मियां.बीबी अपने दो बच्चों – मोहन और मालती के सामने लड़ते.झगड़ते दिन काटते थे। पत्नी मीरा भी उन्हें कम कमाने के लिए कोसती थी। न उसके अरमान पूरे हो पा रहे थे और न ही बच्चों का लालन.पालन ठीक ढंग से हो पा रहा था।
जिंदगी की ऐसी ही चुनौतियो के बीच एक दिन कुछ अजीब सा हुआ। इन तीनों पड़ोसियो के बीच यों तो गहरी दोस्ती थी और एक दूसरे के सुख-दुख से परिचित भी थे पर उन्हें अपनी समस्याएं अंतहीन लग रही थीं। लेकिन जब-जब जो जो होना होता है] होता ही है। ऐसा ही कुछ संयोग बैठा करंजी भाई के कारण!
क्रमशः (काल्पनिक स्टोरी )