रचनाकार : शबनम मेहरोत्रा, कानपुर
कन्हैया
कन्हैया एक बार फिर आ जाओ
तन मन डोले मीठी मुरली बजा जाओ
देखो अबकी द्वारिकाधीश न बनना
देखो ताउम्र राधा के कान्हा ही रहना
हाथों में शोभित सदा रखना मुरली
माथे सुशोभित मोर मुकुट बनवारी
न सजे रत्नजडित स्वर्णमुकुट गिरधारी
न बनना तीक्ष्णधार सुदर्शन चक्रधारी
बालसुलभ क्रीड़ाएँ वृंदावन की रासलीला
मोहित जिस पर आलोकमय गोकुल धाम
ना देना पार्थ को युध्दभूमी में कर्म की सीख
पढ़ाना गोपियों सा ढाई आखर प्रेम की रीत
ना बनना अर्जुन के सारथी बनना पंचाली के सखा
माधव मत करना वो पँचजन्य का अतुल शंखनाद
कदम्ब पे बैठ छेड़ना मधुर सी बंसी की धुन
जिस पर मोहित व्रज की गोप गोपियाँ सुन
कृष्ण एक बार फिर से आना वृंदावन धाम
जग से मिटा बैर सिखाना प्रेम की नई रीत
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श्री कृष्ण
श्री कृष्ण गोविंद हरे मुरारी
आने को भारत कर तैयारी
पहले सा केवल चक्र न लाना
संग में आयुध ढेरों ले के आना
बढ़ने लगा राक्षसों का है वंश
अब तो करोड़ों यहाँ पे है कंश
मानव पे दानव भारी है भारी
श्री कृष्ण गोविंद हरे मुरारी
आने को भारत कर तैयारी
राधा की लगती है हाटे यहाँ
तेरी वो तकती है बाँटे यहाँ
कब तक धरा पर आवन होगा
कब तक जहाँ यह पावन होगा
दानव का कोप भी है जारी
श्री कृष्ण गोविंद हरे मुरारी
आने को भारत कर तैयारी
शबनम करती तुझ से विनती
बर्बरता की करूँ क्या गिनती
आके तुम सबकी भ्रम मिटा दो
आफत में है जान आके बचा दो
जीवन हुआ है अब हहाकारी
श्री कृष्ण गोविंद हरे मुरारी
आने की भारत कर तैयारी
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मुरली लगी है
कृष्ण के होठों मुरली लगी है
ग्वाले बजाए करताल
की राधा नाचे छमा छम—-
गोपी भी नाचे ग्वाले भी नाचे
कोई बजाए रे झाल
की राधा नाचे छमा छम
वृंदा वन की कुंज गालियाँ
कान्हा पर मोहित हर कलियाँ
आज सारे मगन देते हैं
देते जांघो पे अपनी ताल
की राधा नाचे छमा छम
राधा किशन की प्रेम कहानी
दुनियाँ दोहराएगी ये ज़ुबानी
सच्ची घटना है रखना सम्भाल के
की राधा नाचे छमा छम
लिख दे कृष्ण कथा ये शबनम
नहीं लेखनी में है वो दम
आज दुविधा ये कान्हा निकाल
की राधा नाचे छमा छम
कान्हा के होंठों मुरली लगी है
ग्वाले बजाए करताल
की राधा नाचे छमा छम ,,,
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प्रकृति की छटा निराली
प्रकृति की छटा निराली
कही मरू कही हरियाली
फूल और कलियाँ
भंवरो के गुंजन
बजता कितना सुंदर
सरगम
ढलती शाम गोधूली बेला
सूर्य करे सिंदूरी खेला
सुखद सवेरे मस्त हो पुरवा
आलौकिक प्रसन्नता भरता
बहुत मनोरम दृश्य सुहाना
होता नही है कभी पुराना
शाम को पक्षी घर को लोटे
जोर जोर चहचाहट करते
देख प्रकृति की सुंदरता
कविगण भी रचते है कविता
बनी रहे प्राकृतिक सुंदरता
प्रकृति है जीवन दाता
इसे बचाएं प्राणी बचेगा
घुटके वरना प्राणी मरेगा
शबनम काम यही सच्चा है
करना प्रकृति की रक्षा है
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यत्र तत्र सर्वत्र
यत्र तत्र सर्वत्र है बिखरे हास्य व्यंग
के रस
व्यंग उठा कर चिपका दो जो है जैसा तस
सातवी फेल हो बन नहीं सकते
दरवाजे का संतरी
लेकिन सातवी फेल बन जाता देस का शिक्षा मंत्री
सोच हंसी आ जाती है यूँ ही मुझे बरबस
व्यंग उठा कर चिपका दो जो है जैसा तस
लोकतंत्र मूर्खो का शासन मार्शल ने बतलाया
लेकिन देश के नेताओं ने सच्चा कर दिखलाया
कुर्सी से चिपके यह नेता होते न टस से मस
व्यंग उठा कर चिपका दो जो है जैसा तस
कितने बड़े ये नेता अपने उतना बड़ा घुटाला
जनता के सुख के मुद्दे पर मुँह पे लगाए ताला
लम्बा लम्बा भाषण देते जुमले कहे सरस
व्यंग उठा कर चिपका दो जो है जैसा तस
शर्म लाज सब त्यागना पड़ता तब नेता ये बनता है
मोटी इनकी चमड़ी इनको किसी का कुछ न सुनता है
शबनम इनको ठीक करेंगे अब तो अगले बरस
व्यंग उठा कर चिपका दो जो है जैसा तस
यत्र तत्र सर्वत्र है बिखरे हास्य व्यंग के रस
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