रचनाकार : शबनम मेहरोत्रा, कानपुर
यह बात लगभग 45 वर्ष पुरानी है वह रामचरण को पटना में मिली थी ।सोलह सत्रह वर्ष की मैले कुचैले सलवार सूट पहने धनबाद जाने वाली ट्रेन “पाटली पुत्र ” के डब्बे में खिड़की की ओर सीट पर बैठी थी । रामचरण को पटना से मधुपुर आना था सो वह उसी के बगल में बैठ गया ट्रेन खुलने में 15 मिनट देर थी । लगभग सारे लोग ट्रेन में बैठ चुके थे अचानक से उस डब्बे में टी टी ई चढ़ा सबों की टिकट चेक करने लगा चूंकि राम चरण रेलवे स्टाफ था अतः उसके पास रेलवे का ट्रेन पास था।
टी टी ई ने उस लड़की से टिकट मांगा तो उसने कहा टिकट नहीं है और खड़ी हो गई बोली मुझे टाटा ,जाना है न पैसे है न टिकट ,इसपर टी टी ई ने कहा तुम ट्रेन से उतर जाओ आगे मजिस्ट्रेट चेकिंग है और वह दूसरों का टिकट देखते हुवे आगे बढ़ गया ।
उस लड़की ने रामचरण की ओर मजबूर और कातर दृष्टि से देखा पता नही उसकी आँखों में कैसी आत्मीय आकर्षण था ,रामचरण ने उसे बैठने का इशारा किया उसने सोचा मेरी जेब में रेल पास है जिसमे इसी उमर की बेटी का भी पास है इसे साथ कम से कम अपने स्टेशन तक तो ले ही जाऊँगा ।
ट्रेन चल पड़ी थी । रामचरण ने उससे पूछा तुम्हारा नाम क्या है ?कुछ पल चुप रहने के बाद धीमी आवाज में उसने बताया कजरी नाम है मेरा ,माँ बाप बचपन में मर गए थे मामा ने पोसा पाला क्लास 6 तक पढ़ी हूँ लेकिन मामी आने के बाद मामा बदल गए मामी के रोज गाली गलौज मार पीट से तंग आकर एक लड़के के साथ नोकरी करने पटना आई थी लेकिन 2 दिन साथ रहने के बाद पता नहीं वह कहाँ खो गया बहुत ढूँढी पर नहीं मिला सो टाटा जाना चाहती हूँ ।
उसके चेहरे की मलीनता ,सूखे होंठै देखकर रामचरण समझ गया कि यह कई दिन की भूखी है ,उसने कहा ये ट्रेन टाटा नहीं जाएगी तुम मेरे साथ मधुपुर तक चलो वहा से टाटा की ट्रेन में चली जाना ।कजरी कुछ नही बोली चुप ही रही ।इसी बीच ट्रेन में चना बेचने वाला आया राम चरण ने 10 रुपए का चना खरीदा और उसे कजरी की तरफ बढ़ा दिया कजरी ने ना ना करते ले लिया ,उसके खाने का तरीका यह बता रहा था की वह वास्तव में कई दिन की भूखी है ।
ट्रेन लगभग 10 बजे मधुपुर आई ।रामचरण ने उसे उतार कर स्टेशन के सामने होटल में में भरपेट भोजन कराया फिर टाटा नगर का एक टिकट खरीदा और 30 रुपए अलग से निकाल कर कजरी के हाथ में दे दिया और बोला 1 बजे रात में टाटा की ट्रेन आएगी तुम चली जाना और राह खर्च के 30 रुपए रख लो ।
अचानक कजरी बच्चो जैसी फूट फूट कर रोने लगी और बोली मैं नहीं जाऊंगी आप मुझे अपने घर ले चले वहाँ मेरे मामा मामी जान से मार देंगे ,रामचरण ने समझाया ऐसा नहीं होता है तुम्हें अपने घर जाना ही होगा ,कजरी रामचरण के पैर पकड़ लिए और रोने लगी वह पैर छोड़ ही नहीं रही थी ।
अंत में राम चरण ने एक निर्णय लिया पे रिक्शा बुलाकर कजरी को घर ले गया ।पत्नी को सारी बातें बताई ,पत्नी ने पहले ना नुकुर किया पर मान गई ।7 दिनों में अपने कुशल व्यवहार से बच्चों से लेकर उसकी दोनो बेटियो का दिल जीत लिया । वह रामचरण को बाबा और उसकी पत्नी को मॉं बोलती थी 3 महीने होते होते अपनी बेटियो की तरह उसकी पत्नी भी कजरी की ब्याह के लिए सोचने लगी ।
पर यह जायदा दिनों तक नहीं चल पाया ,5 वे महीने पत्नी को पता चला की कजरी माँ बनने वाली है ,अब तो उसकी पत्नी की सारी ममता ,दुलार ,प्यार काफुर की तरह उड़ गया बोलने लगी किस कुलक्षण को घर ले आए हो यह हमारी भी बेटियों को खराब कर देगी ।
रामचरण सोचने लगा अगर कजरी हमारी खुद की बेटी होती तो क्या हम उसे घर से भगा देते या कुछ और करते । मैने पत्नी को समझाया की इस हालत में इसे घर से हटाना अच्छा नहीं होगा कहा जाएगी बेचारी । ऐसा करते है अगले रविवार को तुम ,मै और कजरी टाटा चलते है वहाँ के कुछ लोगों को साथ लेकर इसके मामा और मामी को सौप देंगे ।यही सही होगा ,उसकी पत्नी ने भी सहमति जताई ।
अगली सुबह कजरी की कुछ आहट सुनाई न दी बच्चों ने घर में ढूँढा राम चरण और उसकी पत्नी ने अड़ोस पड़ोस में पूछा पर कजरी को किसी ने नहीं देखा ।आज भी राम चरण के परिवार के लोग कजरी की राह देखते हैं न जानें किस मोड़ किस गली में कजरी मिल जाय ।
(काल्पनिक रचना)