चैप्टर 1
डियर हंसिका सुनती हो? अभी नंदिनी का फोन आया था। कह रही थी कि कल उसे अपने दोस्तों के साथ ओपेनहाइमर फिल्म का फर्स्ट डे, फर्स्ट शो देखने जाना है। जाने दूं क्या? पंकज पचौरी ने अपनी पत्नी हंसिका से पूछा।
हंसिका— तो जाने दो न! मैंने सुना है वह फिल्म बहुत अच्छी है और नोलन का डायरेक्शन जबरदस्त है।
पंकज— वो तो ठीक है। पर एकदम सुबह 9 बजे से इस फिल्म का शो है। क्या अपनी बच्ची उठ पाएगी? जब से उसने इंडियन गैस कंपनी के काल सेंटर में नौकरी पकड़ी है उसकी जिंदगी चकरघिन्नी की तरह हो गई है। देर रात तक आफिस में काम करना, फिर सुबह जल्दी से आफिस पहुंचना यही उसकी रूटीन हो गई है। मुश्किल से पांच—छह घंटे ही सो पाती है नंदिनी! चलो अभी तो यंग है, लेकिन मैं तो लेट नाइट तक ड्यूटी करने का सिला अब तक भुगत रहा हूं। मुझे डायबिटीज तो चलो पिताजी की तरफ से मिली पर हाई ब्लड प्रेशर यह तो स्टील फैक्ट्री में जबरदस्त शोरगुल के बीच देर रात तक स्टोरकीपर का काम करने का नतीजा है। मेरा डाक्टर संतोषानंद त्रिपाठी यही कह रहा था। वो अच्छा हुआ मैं स्टील फैक्ट्री में पंद्रह साल खपाने के बाद संभल गया और मैंने लाइन चेंज कर ली और दो साल पहले चिराग बुक डिपो में स्टोरकीपर बन गया। कम से कम यहां सुकून भरी जिंदगी तो है। रोज सुबह 10 बजे से शाम 6 बजे तक ही वहां बैठना पड़ता है और संडे तथा अन्य वार—त्योहारों की छुट्टियां भी रहती हैं। हालांकि दवाइयों और परहेज से डायबिटीज तो काबू में बनी हुई है पर बीपी में बहुत उतार—चढ़ाव बना रहता है। पंद्रह साल तक लेट नाइट ड्यूटी करने से जो हिसाब बिगड़ा है वह अभी तक ठीक नहीं हुआ है।
हंसिका—सो तो है। हम तो चाहते हैं बच्चों में अच्छी आदतें पड़ें पर करियर बनाने के चक्कर में कुर्बानी देनी ही पड़ती है। आज नंदिनी मेहनत करेगी तो कल उसका फल मीठा ही मिलेगा। मुझे पूरा भरोसा है मेरी बच्ची जरूर कुछ ऐसा कर दिखाएगी कि आपका और मेरा नाम रोशन हो। वैसे भी वह मुझसे सुबह कह ही रही थी कि ओपेनहाइमर फिल्म का फर्स्ट डे, फर्स्ट शो देखने के बाद ही वह आफिस जाएगी। उसके बॉस अच्छे हैं। महीने में एकाध दिन दो—तीन घंटा देर से आने पर कुछ कहते—सुनते नहीं। बस, उनकी शर्त यही रहती है कि उस दिन का काम उसी दिन निपट जाए।
जब पचौरी दंपत्ति रात 10 बजे के आसपास सोने की तैयारी कर रहे थे तभी नंदिनी का फोन आया था। नंदिनी अभी 20 साल की है और हालीवुड की फिल्मों की जबरदस्त फैन है। उसे रियल स्टोरी पर आधारित फिल्में देखना बहुत पसंद है। वह इन फिल्मों से जुड़े तमाम अपडेट्स पर सोशल मीडिया के जरिए निगाह रखती है। इस वजह से उसे अच्छी तरह से मालूम था कि ओपेनहाइमर फिल्म अन्य देशों में जबरदस्त चल रही है तो भारत में भी इसके शो हाउसफुल जाने वाले हैं। वह गैस कंपनी में ड्यूटी करते समय भी इस फिल्म के खयालों में खोई हुई थी। उसे यह सोचकर ही रोमांच हो रहा था कि जब इस पिक्चर में पहले एटम बम विस्फोट का सीन आएगा तो उसे कैसा फील होगा? वैसे तो उसे दिवाली पर फोड़े जाने वाले सुतली वाले हरे रंग के एटम बम से ही डर लगता था। जब भी कोई उसे यह बम चलाता दिखता था तो वह दोनों कानों अंगुलियां डालकर और आंखें बंद करके बैठ जाती थी।
क्रमशः (काल्पनिक कहानी)