चैप्टर 2
बड़ी होने के बावजूद वह अपने अधिकतर फैसले माता—पिता की सलाह लेकर करती थी। उसे पूरा भरोसा था कि उसकी इसी आदत के कारण उसके माता—पिता उसे बेहद चाहते हैं और उसे बहुत—कम रोकते—टोकते हैं। दो—दो बीमारियों के कारण पिता के स्वास्थ्य में आ रही गिरावट को देखते हुए उसने एक साल पहले ही पढ़ाई छोड़कर गैस कंपनी में नौकरी करने का निश्चय कर लिया था। इसी दौरान उसकी फ्रेंडशिप का दायरा और बढ़ गया। उसके मधुर स्वभाव के कारण कालेज के दोस्तों के अलावा आफिस के भी कुछ लोग उसके दोस्त बन गए थे। उसे इन्हीं में से तीन दोस्तों के साथ ओपेनहाइमर फिल्म देखने जाना था। उसने अपने लंबे अरसे के मित्र संदीप राजावत से एप के जरिए फिल्म के टिकट एडवांस में ही बुक करने को कह दिया था ताकि ऐन टाइम पर टिकट बुकिंग के लिए होने वाली मशक्कत से बचा सके।
जब फिल्म देखने के लिए एडवांस में टिकट बुक होने का मैसेज संदीप ने किया तो नंदिनी बेहद खुश हो गई। उसने जल्दी—जल्दी आफिस का सारा काम निपटाने की कोशिश की पर काम इतना ज्यादा था कि उसे पूरा करते—करते कब रात के 11 बज गए, उसे पता ही नहीं चला।
जब वह 11:30 पर घर पहुंची तो मम्मी ने झुंझलाते हुए दरवाजा खोला और साथ ही लंबा—चौड़ा भाषण भी दे डाला — बेटा! तुम्हें पता है न पापा की तबियत बड़ी मुश्किल से काबू में आ रही है। तुम देर से आती हो और खट—पट करती हो तो उनकी नींद डिस्टर्ब हो जाती है। फिर वे ठीक से सो नहीं पाते हैं। तुम्हें टाइम का खास ध्यान रखना चाहिए। कहीं पापा का बीपी हाई नहीं हो जाए।
नंदिनी — ओके ममा! मैं आगे से ध्यान रखूंगी। वैसे भी आज काम बहुत था नहीं तो मैं और पहले घर आ जाती।
मां—बेटी की ऐसी तीखी बहस सुनकर पंकज की भी नींद खुल गई। वे बड़बड़ाने लगे — इस लेटनाइट की ड्यूटी ने मेरी तो जिंदगी बर्बाद की ही अब कहीं ऐसा न हो नंदिनी भी कम उम्र में ही दो—चार रोगों का शिकार हो जाए। बेचारी बहुत मेहनत कर रही है पर आफिसवालों पर उसका जोर थोड़े ही चलता है। जो काम होता है उसे पूरा करके आना ही पड़ता है।
इस बहस—मुसाहिबे के बीच रात के 1 बज गए तब कहीं जाकर पचौरी परिवार को सोना नसीब हुआ।
हर दिन की तरह सूरज अगले दिन समय पर निकला पर न तो नंदिनी की आंख खुली और न ही हंसिका की। अलबत्ता पंकज जरूर सुबह 5 बजे से ही जग गए थे क्योंकि रात में नींद पूरी नहीं होने से उन्हें बैचेनी थी और बहुत ज्यादा थकान लगने से हाथ—पैर अलग दुख रहे थे। जब सुबह 7 30 बजे नंदिनी के साइलेंट मोड में रखे मोबाइल फोन की लाइट दो तीन बार चमकी तो पंकज ने उसे आवाज देकर उठाने की कोशिश की। नंदिनी को उस समय जबरदस्त नींद के झोंके आ रहे थे। वह पंकज की आवाज तो सुनती पर उसे कुछ समझ में नहीं आ रहा था। करीब आधे घंटे में जब तीन—चार नंदिनी के दोस्तों के नंबर मोबाइल फोन पर डिस्प्ले होते दिखे तो पंकज समझ गए कि ओपेनहाइमर फिल्म का फर्स्ट डे, फर्स्ट शो देखने के लिए जगाने के वास्ते इन लोगों के फोन आ रहे हैं।
नींद से भरी नंदिनी को तो जैसे कुछ होश ही नहीं था। ऐसे में उसे जगाने के लिए पंकज ने फोन को साइलेंट मोड से हटाया, उसकी रिंग टोन का वॉल्यूम फुल किया और फिर मोबाइल फोन नंदिनी के कान पर रख दिया। अब जैसे ही संदीप का अगला कॉल आया तो उसके फोन की रिंग टोन के रूप मे द स्ट्रेंजर फिल्म का गाना “फाइंडिंग होप ” तेज आवाज में बज उठा। यह रिंग टोन सुनकर नंदिनी की नींद फटाक से उड़ गई और फोन पर जरा सी हाय—हलो के बाद उसने संदीप से कहा कि वह जल्दी से तैयार होकर संगीन टाकीज पहुंच जाएगी। ओपेनहाइमर का हिंदी वर्जन ग्वालियर शहर की केवल इसी टाकीज में लगा था।