सर्वोत्तम लघु उद्यमी पुरस्कार वितरण समारोह का वह दृश्य देखकर अच्छे.अच्छे लोगों की आंखों में आंसू आ गए। मंच पर पुरस्कार लेने के लिए शानदार थ्री पीस सूट पहने जब दीपक पराशर चढ़ा तो उसने पहले तमाम दर्शकों को प्रणाम किया और फिर उद्यमिता तथा विकास मंत्री प्रमोद भनसाली के पैर छू लिए। मंत्री ने उसे पुरस्कार स्वरूप पांच लाख रुपये का चेक, एक शील्ड और एक प्रशस्ति पत्र भेंट किया। साथ ही,उसे यह पुरस्कार पाने के लिए शाबाशी भी दी। इसके साथ ही पूरा लखनउ का बीएसए आडिटोरियम तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा।
जैसे ही दीपक मंच से नीचे उतरा मीडियाकर्मियो से उसे घेर लिया। इतने सारे मीडियाकर्मियों को देखकर पहले तो दीपक हैरान रह गया। उसने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि उसे ऐसा सम्मान हासिल करने का गौरव मिलेगा। तमाम मीडियाकर्मियों के कैमरों का फोकस उसकी ही ओर था। वह दिल में उत्साह और आंखों में खुशी के आंसू लिए मीडियाकर्मियों की भीड़ को चीरकर अपनी पैनी नजरों से अपने बूढ़े माता.पिता इमरती बाई और रामजस पराशर को तलाश रहा था। वे दर्शकों की दीर्घा में सबसे आगे की पंक्ति में बैठे थे। वे दीपक को पुरस्कार मिलने के पूरे दृश्य को सुध.बुध खोकर अपलक निहार रहे थे। वे इस काम को करते हुए इतने भावुक हो गए थे कि कब दीपक मंच से नीचे आ गया उन्हें पता ही नहीं चला।
दीपक ने मीडियाकर्मियों को परे करने की कोशिश करते हुए आवाज लगाई मां, पापा! उसकी आवाज से इमरती और रामजस की मानो तंद्रा टूट गई और वे आवाज की दिशा की तरफ अपना मुंह करके बोल उठे . कहां हो बेटा?
मां, पापा! मुझे यहां मीडिया ने घेर रखा है। मैं आपकी तरफ आना चाहता हूं। दीपक ने जोर से कहा। मीडियाकर्मियों को भी लगा कि दीपक के मन में अपने मम्मी.पापा से मिलने की तीव्र इच्छा है। ऐसे में उसे रास्ता दे देना ठीक होगा। शायद इससे कुछ और बेहतरीन फोटो खींचने का मौका मिल जाए।
इसके बाद मीडियाकर्मी दो भागों में बंट गए और उनके बीच में से रास्ता पाकर दीपक खुशी से फूला नहीं समाते हुए दौड़ कर अपने मम्मी.पापा के पास पहुंचा। एक क्षण तो वह उन्हें निहारता रहा। तीनों ने मुंह से कुछ नहीं कहा। पर आंखें बोल उठीं। आंसू गालों की ढलानों से लुढ़कर कपड़ों को सराबोर करने लगे। दीपक ने पुरस्कार, प्रशस्ति पत्र और चेक झुककर माता.पिता के चरणों में बिना कुछ कहे रख दिया। पिता ने उसे उठाया और भाव.विह्वल होकर गले से लगा लिया। मां इमरती बाई भी उनके पास आ गईं और अपने दोनों हाथों से दोनों को थपकी देने लगीं। इस अविस्मरणी दृश्य को कैमरे में कैद करने के लिए कई फ्लैशें एक साथ चमक उठीं। कुछ मीडियाकर्मियों ने इन पलों का वीडियो बना लिया।
इसके बाद फिर मीडियाकर्मियों ने दीपक को घेर लिया। उनमें से न्यूज एवरीटाइम चैनल की रिपोर्टर सुलोचना ने अपनी मधुर आवाज में पूछा . दीपक जी! अविस्मरणीय हैं ये क्षण! क्या हम अब आपसे बात कर सकते हैं?
सुलोचना की बात सुनकर दीपक के पापा भर्राये स्वर में बोले . बेटा! तुमने हमारा नाम रोशन कर दिया है। तुम्हें मीडियावाले बुला रहे हैं। बेटा! जाओ उनसे मिल लो।
पापा की बात से दीपक का दिमाग थोड़ा डायवर्ट हुआ और वह खुद को झिंझोड़कर मां के पैर छूकर बोला . मां मैं जाउं क्या?
इमरती बाई ने भी प्यार और आंसुओं से भीगे स्वर में कहा . हां हां जाओ न बेटा!
माता.पिता की आज्ञा पाकर दीपक मीडियाकर्मियों की ओर मुखातिब हुआ। उसकी भावनाओं के प्रवाह पर मानो ब्रेक सा लगा और वह अपने आंसुओं को जैसे.तैसे थामते हुए बोला . जी!
दीपक ने देखा कि सुलोचना की पैनी निगाहें उसी पर टिकी हुई हैं। अतः वह कुछ सकपकाते हुए बोला – मैडम! अब सब ठीक है। पूछिए क्या पूछना चाहती हैं?
सुलोचना – हमें यह देखकर अच्छा लगा कि बबीना कैंट जैसे छोटे से कस्बे से निकला दीपक आज न केवल कुल दीपक बन गया है बल्कि 5 करोड़ के टर्नओवर वाली पैकेजिंग इंडस्ट्री भी पूरी शिद्दत से चला रहा है। और यह इंडट्री दिन प्रतिदिन तरक्की करती जा रही है। लोगों को भले ही लगे कि आपको यह सफलता रातोंरात मिली होगी, लेकिन ऐसा सच में तो नहीं हुआ होगा। क्या है इतनी बड़ी इंडस्ट्री के मालिक बनने की सच्ची कहानी?
दीपक – मैडम! मैंने यह इंडस्ट्री आज से पांच साल पहले अपने पिताजी से मिठाई के डिब्बे बनाने का काम सीखते हुए शुरू की थी। काम करते-करते पिताजी ने मुझे एक गुरु मंत्र दिया था। वही मंत्र इस इंडस्ट्री का आधार बना।
सुलोचना – क्या था वह मंत्र? क्या आप हमारे दर्शकों से शेयर करना चाहेंगे?
दीपक – जी, पांच अक्षरों का वह मंत्र था – एमएमएमएमटी! इसमें पहले एम का मतलब है माइंड। यानी हमें जो काम करना है वह दिमाग लगाकर करना है। दूसरे एम का मतलब है मनी! आप सब तो जानते हैं कि बिना मनी यानी आर्थिक निवेश के कोई भी इंडस्ट्री न खुल सकती है और न ही चल सकती है। अतः मैंने कोस्ट इफेक्टिव ढंग से अपनी इनकम और एक्सपेंसेस का हिसाब-किताब बेहतरीन करने की कोशिश की। बाधाएं आईं पर हमने हिम्मत नहीं खोई बल्कि उन बाधाओं को काबू में करके बेहतर से बेहतर रास्ता निकालने की कोशिश की। अब मैं तीसरे एम का मतलब बताता हूं। दरअसल, यह एम मैनेजमेंट यानी प्रबंधन का प्रतीक है। हम जो भी काम करते हैं पूरी तैयारी के साथ अपने संसाधनों का बेहतर इस्तेमाल करते हुए करते हैं। इस मंत्र में चैथे एम का मतलब माडिफिकेशन है। हम अपने प्रोडक्ट्स को लगातार मोडिफाई करते रहते हैं। हम उनकी खराबियों की समीक्षा करके उन्हें अधिकाधिक जनोपयोगी बनाने के लिए इनोवेटिव आइडियाज पर निरंतर काम करते रहते हैं। इस मंत्र के आखिर में टी आता है। टी यानी टाइम। हम अपनी इंडस्ट्री के टारगेट्स को टाइम के भीतर अचीव करने की कोशिश करते हैं। यदि कोई काम समय पर नहीं हो, तो उसका कोई मतलब नहीं रह जाता। अतः हम समय को ध्यान में रखते हुए रा-मटेरियल, अपनी वर्किंग स्ट्रेंग्थ, प्रोडक्शन और डिलीवरी को मैनेज करते रहते है। इस मंत्र को अपनाने से जो नतीजा आया वह आप सबके सामने है!
सुलोचना – आपने पंचाक्षरी फार्मूले से पांच करोड़ रुपये की इबारत लिख दी। भई, वाह! कमाल है! अब आप अपनी फैमिली के बारे में बताइए!
दीपक – मेरे पिताजी ने एक छोटी सी कोठरी से इस काम की शुरुआत की थी। वे दिन-रात मेहनत करते थे पर सही दिशा और दशा नहीं होने से ज्यादा कुछ तरक्की नहीं हो पा रही थी। वे दिल के बेहद अच्छे हैं। उनके भोलेपन का फायदा कई चतुर-चालाक लोग उठाते रहते थे। उन्होंने मेरे पिताजी को जमकर चूना लगाया। इससे वे जो कुछ भी कमा पाते थे उसमें गुजर-बसर होना ही मुश्किल था, एक इंडस्ट्री चलाने की सोचना तो दूर की बात थी। मेरी माताजी घरेलू काम-काज में व्यस्त रहते हुए यदा-कदा फुर्सत मिलने पर पिताली के काम में भी हाथ बंटा देती थीं। पर उनकी पर्याप्त ट्रेनिंग नहीं होने से जमाने की मांग के अनुरूप काम-काज का स्किल डेवलप नहीं हो पा रहा था। हमने इस सब खामियों को दूर करने के लिए कमर कसी और जो भी दिक्कतें थीं, उन्हें यथासमय दूर करने में जी-जान से लगे रहे। माता-पिता मुझे अपने अनुभवों से सिखाते गए इससे हमारी इंडस्ट्री को बेहद फायदा हुआ। फिर मैंने पैकेंजिंग के काम का छह महीने का सर्टिफिकेट कोर्स किया और अपने घर की इंडस्ट्री संभालने से पहले इससे जुड़े तमाम पहलुओं के बारे में नेट, बुक्स, डिस्कशन आदि के जरिए जानकारी जुटाई, स्टडी की। तब जाकर यह काम संभल सका!
सुलोचना – क्या पिछले पांव वर्षों में काम करते समय आपके साथ कोई मनोरंजक घटना हुई थी? क्या आप उसे हमारे साथ शेयर करना चाहेंगे?
इस सवाल से दीपक के चेहरे पर कुछ लकीरें उभरी पर वे उस घटना की स्मृति ताजा होते ही मुस्कान के रूप में बदल गईं। वह मुस्कराते हुए बोला – एक बार मेरे पास एक क्लायंट का फोन आया था। मोबाइल पर उसने मुझसे कहा कि क्या उसे गत्ते का डिब्बा मिल जाएगा। उस दिन नेटवर्क जरा मरा-मरा सा आ रहा था। मुझे लगा कि उसे कुत्ते के लिए डिब्बा चाहिए। मैंने उससे विनम्रता से कहा – साहब! हम कुत्ते का डिब्बा नहीं बनाते! आप ऐसी अजीब सी फरमाइश क्यों कर रहे हैं? फिर सामने वाला समझ गया कि मुझे उसका वाइस काल ठीक से सुनाई नहीं दे रहा है। तब उसने मुझे मैसेज भेजा तब कहीं जाकर मेरी समझ में आया कि उसे कुत्ते नहीं गत्ते का डिब्बा चाहिए। इस घटना को याद करके हम अब भी हंसते रहते हैं।
सुलोचना – आपकी स्टोरी काफी दिलचस्प और प्रेरक है। अब आप आगे क्या करने की सोच रहे है?
दीपक – मौजूदा जमाना वोकल फार लोकल का है। हमारे प्रोडक्ट्स कानपुर से लेकर इंदौर तक के बेकरी आनर्स, हलवाई, जूता आदि बनाने वाले लोग इस्तेमाल करते हैं। हम उनकी आवश्यकताओं को समझकर उनकी रुचि व सुझावों के मुताबिक उन्हें प्रोडक्ट्स मुहैया कराते हैं। इससे वे हमारे प्रोडक्ट्स को हाथोंहाथ अपना लेते हैं। वे भी खुश, हम भी खुश!
सुलोचना – चलिए! बाहर मौसम भी खुशनुमा हो रहा है! पुरस्कार वितरण समारोह के आयोजकों ने मीडियाकर्मियों और गेस्ट्स के लिए चाय-नाश्ते का बढ़िया इंतजाम किया है। आइए, हम इस खुशनुमा माहौल में पेट को भी खुश कर दें।
यह सुनकर सुलोचना और दीपक के साथ वहां मौजूद तमाम गेस्ट और मीडियाकर्मी हंसने लग गए।
(काल्पनिक कहानी)