एट प्वाइंट वन
आज के अखबार की एक खबर एक प्राइवेट कंपनी के ऑफिस में चर्चा का विषय बनी हुई थी – खासकर उन कर्मचारियों के बीच जिनके रिटायरमेंट में आठ-दस साल बाकी थे। अन्य कर्मचारी तो बस, रोज़मर्रा की तरह फेसबुक, व्हाट्स एप, यू-ट्यूब आदि पर नजर रखते हुए थोड़ा-बहुत काम करने में व्यस्त थे। मानो इस खबर से उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ने वाला हो। यह खबर थी – पीएफ पर ब्याज दरें 0.4 प्रतिशत कम करके 8.1 प्रतिशत करने के बारे में।
वयोवृद्ध से बड़े बाबू माथुर जी बोले – ‘भइया! हमारे रिटायरमेंट में तो बस चार साल ही रह गए हैं। अभी हर महीने 6,000 रुपये पीएफ कटता है। हम तो सोच रहे थे कि रिटायरमेंट होने तक अच्छा खासा एमाउंट इकट्ठा हो जाएगा। अब लग रहा है कि पैसा उम्मीद से कम मिलेगा।’
नागजी उनकी हां में हां मिलाते हुए बोले – ‘भई! नुकसान तो हुआ है। अब बैंकों में भी ज्यादा ब्याज नहीं मिलता, पोस्ट ऑफिस में पहले जहां मासिक आय योजना आदि पर 12-12 प्रतिशत रिटर्न मिलता था, अब तो वह भी घटकर 7-8 प्रतिशत हो गया है। एलआईसी, पेंशन स्कीम आदि में भी इतना रिटर्न नहीं मिलता कि लोग मौजूदा लिविंग स्टैंडर्ड को रिटायरमेंट के बाद भी बरकरार रख सकें। अब तो यही लगता है कि शेयर बाजार में निवेश के सिवा कोई विकल्प नहीं बचा है।’
उनकी बात सुनकर मिडिल ऐज के वसीम भाई बोले – ‘पर जनाब ! मुझे तो शेयर मार्केट का अलिफ, बे, ते, पे भी नहीं आता। मजे की बात देखो! इतने अहम मुद्दे पर चर्चा चल रही है और अपने छोटे बाबू राजेश भाईजान तो फेसबुक पर चिपके हुए हैं। जब उनका रिटायरमेंट होगा, हाथ-पैर जवाब देने लगेंगे तब समझ में आएगा कि पीएफ का कितना बड़ा सहारा रहता है। मेरे अब्बा जान ने पीएफ से मिले पैसे से मेरा निकाह कराया था और अपना बुढ़ापा भी बिना किसी के आगे हाथ फैलाए गुजार लिया था और इज्जत के साथ जन्नतनशीं हो गए थे।’
चर्चा के बीच में अपना नाम सुनकर राजेश थोड़ा सकपकाया औंर बोला – ‘एं, ओ, एं ओहो! अभी तो मेरे पास बहुत टाइम है। 0.4 प्रतिशत ही तो ब्याज कम हुआ है। इसमें इतनी हाय-तौबा मचाने की क्या बात है!’
राजेश की बात सुनकर माथुर जी की त्योरियां थोड़ी चढ़ गईं और वे बोले – ‘बेटा! माना कि तुम्हें रिटायरमेंट में तीस साल हैं पर तुम्हें यह तो मालूम ही है बूंद-बूंद से घड़ा भरता है और बूंद से ही खाली हो जाता है। अगर तुम्हें हर साल 0.4 प्रतिशत नुकसान होगा तो मौजूदा दरों के अनुसार इन तीस सालों में साधारण ब्याज दर से भी 12 प्रतिशत का नुकसान होगा। फिर हर साल जो इन्क्रीमेंट आदि होता है उस पर भी चक्रवृद्धि ब्याज कम मिलने से नुकसान होगा। तो कुल मिलाकर हिसाब लगाकर देख लो कि रिटायरमेंट के आसपास तुम्हें कितनी कम रकम मिलेगी। फिर तब तक महंगाई कितनी बढ़ चुकी होगी? तो क्या तुम तब वैसे रह पाओगे जैसे आज रह रहे हो?’
माथुर जी की बात सुनकर राजेश सोच-विचार में पड़ गया। वह हिसाब-किताब करने लगा। इसी बीच वसीम भाई बोले – ‘मैं सोचता हूं कि हर महीने 10 फीसदी की रैकरिंग करा दूं। फिर साल के अंत में उस रकम को शेयर बाजार में इन्वेस्ट कर दूं। पर मुझे शेयर बाजार के बारे में कुछ भी नहीं मालूम!’
वसीम भाई के कंधे पर हाथ रखकर नागजी बोले – ‘भाईजान! चिंता मत करो। जब आप छोटे थे तो आपने साइकिल सीखी ही होगी। किसी ने सिखाई भी होगी। अब तो आप गाड़ी भी अच्छे ढंग से चला लेते हैं। वैसे ही मार्केट का मामला है। सीखना शुरू करो, किसी से गाइडेंस लो और थोड़ा-थोड़ा निवेश शुरू करो। धीरे-धीरे सब आ जाएगा।’
राजेश बोला – ‘पर मार्केट में तो रिस्क बहुत है।’
नाग जी उसे समझाते हुए बोले – ‘भइया! आप घर से ऑफिस आते हो तो रास्ते में गाड़ी चलाने में कितनी रिस्क रहती है। फिर आफिस में बिजली की चीजें हैं। क्या यहां रिस्क नहीं है? क्या घर में घरेलू गैस के सिलेंडर के इस्तेमाल में रिस्क नहीं है? आप तो बस इतना करो कि बाजार का मिजाज समझो, सही लोगों की राय लो और सारे अंडे एक ही टोकरी में मत रखो।’
मोरल ऑफ द स्टोरी: आपको प्रभावित करने वाले मुद्दों के प्रति जागरूक रहिए और तैराकी सीखकर ही पानी में उतरने की सोचें।
(काल्पनिक कहानी )