रचनाकार : उत्तम कुमार तिवारी ” उत्तम “, लखनऊ
मै उत्तम कुमार तिवारी ” उत्तम ” लखनऊ से आज आप सबके सामने एक रहस्य भरी घटना को प्रस्तुत कर रहा हूँ जो मेरे साथ घटित हुई । ये बिल्कुल सत्य घटना है ।
मै अपने ऑफिस के कार्य से कोलकता गया था वहा से मै फिर भुवनेश्वर चला गया ऑफिस के ही कार्य से । भुवनेश्वर मे अपना कार्य पूर्ण करने के बाद मैने अपने ऑफिस के मित्र से पूछा कि पुरी कितनी दूर है यहां से तो उसने कहा कि एक घंटे का सफऱ है तो मैने उससे पुरी जाने की इच्छा व्यक्त किया और कहा कि मै भगवान श्री जगन्नाथ जी के दर्शन क्र लुूँगा । उसने तुरंत वहाँ फोन करके मेरे लिए सारा इंतज़ाम करा दिया रहने का और दर्शन करने का ।
मेरे लिए गाडी बुला दिया और बोला कि ये आपको होटल मे पहुचा कर वापस आ जायेगा । मै भी खुशी खुशी से पुरी के लिए रवाना हो गया । वहाँ होटल मे पहुँचा ही था कि एक पंडा का फोन आ गया कि साहेब गर्ग साहेब ने आपका फोन न० मुझे दिया और कहा कि भगवान के दर्शन करा देना साहेब को । मैने उसको होटल पर बुला लिया । फिर तैयार होकर पंडा जी के साथ मै मंदिर चला गया दर्शन करने के लिए ।
मै उन दिनों मदिरा पान, धूम्रपान , और मांस भक्षण भी करता था । मेरे सूटकेस मे शराब की बोतल रखी थी । मैने होटल मे कहा था कि मुझे शाम को बढ़िया मछली खानी है । तो होटल के वेटर ने कहा था कि आप दर्शन करके आइये मै आपको बढ़िया मछली खिलाता हूँ । ये कह कर मै दर्शन करने पंडा जी के साथ चला गया ।
पंडा जी ने मुझे सबसे आगे खड़ा कर दिया कि जैसे ही पट भगवान् के खुलेंगे वैसे ही मुझे उनके दर्शन हो जाएंगे । अब यहां पर मै रहस्य की बात बताने जा रहा हूँ बहुत ध्यान से सुनियेगा । भीड़ थी मंदिर के प्रांगड़ मे ।
जैसे ही भगवान के पट खुले और मैने दर्शन किये वैसे ही मेरी अंतरात्मा से एक अजीब सी मनोकामना निकली और वो थी कि हे जगन्नाथ बाबा मेरे जीवन से ये तीनों अवगुण समाप्त हो जाए कि मै मदिरापान , मांस भक्षण और धूम्रपान नवरात्रि करूँ और कुछ नही आपसे मांगता हूँ । और मै दर्शन करके मंदिर के बाहर आ गया ।
फिर वहाँ पर खड़े होकर जगन्नाथ जी के ध्वजारोहण देखने के लिए खड़ा हो गया । मै खड़ा ही था कि एक संत मेरे निकट आये वो बिल्कुल इसकान के जैसे संत होते है कि मोटी लम्बी शिखा गले मे तुलसी जी की माला गुलाबी रंग के वस्त्र धारण किये हुए और खड़ाऊ पहने हुए मेरे पास आये ।
क्रमश:
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