रचनाकार : उत्तम कुमार तिवारी ” उत्तम “, लखनऊ
मै खड़ा ही था कि एक संत मेरे निकट आये वो बिल्कुल इसकान के जैसे संत होते है कि मोटी लम्बी शिखा गले मे तुलसी जी की माला गुलाबी रंग के वस्त्र धारण किये हुए और खड़ाऊ पहने हुए मेरे पास आये । मुझे बड़े विनम्र शब्दो मे बोले कि बेटा तुम्हारी तीनों मनोकामना पूर्ण हो गई है और ये कह कर उन्होंने अपनी पोटली से थोड़े से चावल के दाने प्रदान किये और मुझसे कहा कि कुछ दाने खा लो और शेष दाने अपने घर ले जाना सबको खिला देना और अपने अन्न भंडार मे रख देना ।
मै बड़े ही अचंभे मे पड़ गया कि जो मैने भगवान से कहा था वो तो मैने अपने मन मे कहा था तो इनको कैसे मालूम हुआ और ये वहाँ पर थे भी नही आखिर इनको कैसे पता चला मेरी मनोकामना के बारे मे । मै आँख बंद कर उनके सामने हाथ जोड़ कर खड़ा हो गया । जब मेरी आँख खुली तो वो संत मेरे सामने नही थे । मैने उनको पूरे मंदिर मे खोजा किन्तु वे मुझे नही मिले ।
मै वहाँ से आकर समुद्र देवता के दर्शन किये और होटल मे आ गया । कुछ समय पश्चात वेटर आया और मुझसे बोला कि साहेब आपके लिए मछली कितनी देर मे लाऊं ।
मैने तुरंत उससे कहा कि नही मेरे लिए मत लाना मेरा मन नही । तो उसने मुझसे बोला कि साहेब आपका ऑर्डर था तो मैने स्पेशल मछली आपके लिए बनवा दिया था । तो मैने उस वेटर से कह दिया कि उसका बिल मेरे होटल के बिल मे जोड़ देना । वो मछली तुम लोग खा लेना और मैने उससे पूछा कि क्या तुम ड्रिंक करते हो तो उसने बोला जी हा मै ड्रिंक करता हूँ तो मैने उससे कहा कि मेरे बैग मे बोतल पड़ी है उसको निकाल लो और ले जाओ और ये सिगरेट भी ले जाओ आज की पार्टी तुम लोग मेरी तरफ से कर लेना ।
ये कह कर मैने अपनी सिगरेट भी उसको दे दिया वो बड़ी खुशी के साथ लेकर चला गया । एन्टिगुटी की बोतल पा कर वो बढ़ा खुश हो गया क्यु कि वो एक महगी शराब थी । ये घटना है 2012 की वो दिन और और आज का दिन मैने ये तीनों चीजो का स्वाद तक नही जानता हूँ । मेरे जीवन से ये मेरे तीनों अवगुण समाप्त हो गये ।
आज तेरह वर्ष हो गये है मैने इन चीजों को छुवा तक नही । ये थी बहुत रहस्य की बात ।
शेष श्री जगन्नाथ बाबा जी की कृपा है मेरे ऊपर ।
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