चैप्टर-2
गुलाबो देवी-मैं हर मुमकिन कोशिश करूंगी कि तुम्हारे रिसेप्शन में पूरे समय मौजूद रहूं।
गुलाबो देवी की कंपकंपाती आवाज में ये बातें सुनकर वैभव के मन में अपनी मां की यादें ताजा हो गईं और आंखों में अश्रु छलक पड़े। यह दृश्य देखकर गुलाबो को लगा कि कहीं वैभव खुशी के इस मौके पर रोने नहीं लग जाए, अतः उन्होंने उसकी बेचैनी कम करने के लिए कहा – बेटा! मैं अभी आप लोगों के लिए चाय-नाश्ता लेकर आती हूं। यह सुनकर वैभव ने अपने आप को संभाला और बोला – आंटी! बैठिए न। क्यों तकल्लुफ कर रही हैं।
गुलाबो – बेटा! मेरे हाथ की थोड़ी चाय पिओगे तो जी हल्का हो जाएगा। चाय बनाने में लगता कितना वक्त है? यही कोई चार-पांच मिनट! मैं अभी आती हूं। इसके बाद वे किचन में चाय बनाने चली गईं।
कुछ ही देर में ड्राइंग रूम में बैठे सबलोगों के लिए गरमागरम चाय और बेसन की पकौड़ियां आ गईं। यह नाश्ता देखकर पुरुषोत्तम तिवारी को कुछ याद आया। वे रामशीष से बोले – भाई साहब! ये पकौड़ियां देखकर याद आया कि हमने इस रिसेप्शन में सबके लिए मांगीलाल कैटरर्स से खाने-पीने के इंतजाम को कहा है। वह पूरे 70 तरह की डिशें बनाएगा। शादी वैभव मैरिज गार्डन में होगी जो कि यहां से कोई तीन किलोमीटर दूर है। आप सबसे अनुरोध है कि आप सब जरूर-जरूर पधारना।
इसके बाद वैभव और उसके पापा चाय-नाश्ता करके आगे निमंत्रण पत्र बांटने निकल गए।
फिर आई 10 तारीख। रामाशीष और उनकी फैमिली सजघजकर ठीक रात के 7.30 बजे वैभव मैरिज गार्डन पहुंच गए। वहां वैभव और उसकी पत्नी एक बेहद सजे-धजे स्टेज पर बेठे हुए थे जबकि उसके पापा और अन्य रिश्तेदार मेहमानों का स्वागत-सत्कार में लगे थे। पूरे गार्डन में खाने-पीने स्टाल लगे थे। पीने के लिए गर्म ठंडे पानी से लेकर भांति-भांति के हाॅट व कोल्ड ड्रिक्स के अलावा दस तरह की मिठाइयां, तीन तरह के चावलों के व्यंजन, तीन तरह के तंदूरी आयटम, तीन तरह की दालें, पांच तरह के सलाद और तीन तरह के अचार, बेसन, मैथी व आजवाइन की पूड़ियां, गोलगप्पे, नूडल्स, पास्ता आदि के अलावा नाॅर्थ व साउथ के दिलकश आइटम जैसे – छोले भटूरे और इडली, डोसा आदि की भरमार थी।
जैसे ही रिसेप्शन शुरू हुआ लोग खाने-पीने के स्टाॅलों पर उमड़ पड़े। कुछ ही देर में पुरुषोत्तम को आभास होने लगा था कि उन्होंने करीब 1000 मेहमानों के लिए खाने-पीने का इंतजाम कराया था पर रात 8 बजे से 11 बजे के पीक आवर्स मे 400 से भी कम मेहमान आए हैं।
मेहमानों की कम उपस्थिति को लेकर मांगीलाल ने भी बाकायदा खाने-पीने के काउंटरों पर रखीं प्लेटों का हिसाब-किताब लगाकर पुरुषोत्तम को आगाह किया था।
क्रमशः
(काल्पनिक कहानी)