चैप्टर-1
आगामी 10 तारीख को हमारे सुपुत्र वैभव की शादी का रिसेप्शन है। आप सब इस पावन अवसर पर सादर आमंत्रित हैं। पुरुषोत्तम तिवारी ने अपने परम प्रिय मित्र रामाशीष चौहान को निमंत्रण पत्र देते हुए कहा। निमंत्रण पत्र देखकर रामशीष की बांछें खिल उठीं। ऐसा होना स्वाभाविक ही था क्योंकि जिस लड़की से वैभव की शादी हुई थी वह पठानकोट की रहने वाली थी। पठानकोट में ही चौहान ने दस साल तक रेलवे की नौकरी की थी और लड़की यानी योगिता के पिता जनार्दन तिवारी रामाशीष के साथ ही काम करते थे।
रिटायरमेंट के बाद रामशीष अपने पूर्वजों के मकान में कटनी में रहने लग गए थे और वहीं उनकी जान-पहचान पुरुषोत्तम से हो गई थी। रामाशीष को ब्याह की दावतें खाने का जबर्दस्त शौक था। उनके चटोरेपन के किस्से दूर-दूर तक मशहूर थे। रेलवे में स्टेशन मास्टर के पद से रिटायर होने के कारण पेंशन भी अच्छी आती थी और ऐसी दावतों में वे पूरी तबियत से माल उड़ाते थे और मेजबान को गिफ्ट आदि देने में भी जबरदस्त खर्च करते थे। इससे मेजबान भी खुश रहते थे और रामशीष व उनकी फैमिली भी।
रामशीष की पत्नी गुलाबो देवी राजस्थान के पुष्कर की निवासी थीं। पूरी घर-गृहस्थी का जिम्मा उन्हीं का था। उनकी बेटी सुरभि स्थानीय कालेज में एमए कर रही थी जबकि बेटे सुमन ने स्थानीय अखबार दिन का प्रहरी में दो वर्ष से नौकरी कर रहा था।
वेभव के पिता भारतीय प्रशासनिक सेवा के रिटायर्ड अधिकारी थे। उनकी दो बेटियां थीं – कंगना और मंगला। इनके अतिरिक्त उनकी आंखों का कोई तारा था तो वह वैभव ही था जो कि पिछले वर्ष वित्त विभाग में एलडीसी की नौकरी मिलने के बाद भोपाल में ही सरकारी निवास में रहने लगा था। वह चौहान को निमंत्रण देने अपने पापा के साथ आया था।
उसने चौहान से कहा – अंकल! पूरी फैमिली के साथ जरूर आना। अन्यथा, आप सबके बिना यह रिसेप्शन अधूरा सा लगेगा।
फिर वैभव ने रामाशीष की पत्नी से कहा – आंटी! मुझे यह जानकर बेहद अफसोस हुआ था कि चार दिन पहले हुई हमारी शादी में अंकल और आपकी फैमिली ऐन टाइम पर अंकल की डायबिटीज बिगड़ने से अस्पताल का चक्कर काटने के कारण शामिल नहीं हो पाए थे। खैर, कोई बात नहीं अब अंकल की तबियत ठीक लग रही है। अतः आप सबसे अनुरोध है कि रिसेप्शन में जरूर पधारना!
गुलाबो देवी वैभव का अनुरोध सुनकर गदगद हो गईं। वे भर्राये गले से बोलीं – बेटा! मैं जरूर आउंगी। मुझे यह अच्छी तरह से मालूम है कि तुम्हारी माता शर्मिष्ठा के तीन साल पहले हुए निधन के बाद से हमलोगों को ज्यादा अहमियत देने लगे हो। मुझे तुम्हारी मां की बेहद याद आती है। आज जब तुम अपने रिसेप्शन के निमंत्रण पत्र बांट रहे हो, यदि वे इस मौके पर मौजूद रहतीं तो कितना अच्छा होता। बेटा! यह सच है कि तुम्हारी मां की जगह मैं नहीं ले सकती लेकिन तुम हम सबको जो आदर और मान देते हो, वही हमारे लिए काफी सुकून देने वाला है। मैं हर मुमकिन कोशिश करूंगी कि तुम्हारे रिसेप्शन में पूरे समय मौजूद रहूं।
क्रमशः
(काल्पनिक कहानी)