आखिरी चैप्टर
मेहमानों की कम उपस्थिति को लेकर मांगीलाल ने भी बाकायदा खाने-पीने के काउंटरों पर रखीं प्लेटों का हिसाब-किताब लगाकर पुरुषोत्तम को आगाह किया था।
इस हिसाब-किताब को सुनकर पुरुषोत्तम के पैरों के तले की जमीन खिसक गई। 1100 रुपये प्लेट की दर से मांगीलाल को उन्हें पेमेंट करना था। जब वे पेमेंट का हिसाब-किताब सोच-सोचकर परेशान होकर माथे पर पसीना आने लगा तो उनका ध्यान रामाशीष और उनकी फैमिली की तरफ गया। रामाशीष और उनकी फैमिली हर व्यंजन के स्टाॅल पर जाकर व्यंजन को थोड़ा-बहुत चखकर मजे ले रही थी।
खाना और बर्बाद न हो, यह सोचकर पुरुषोत्तम चिंतातुर हो उठे। वे भागे-भागे चौहान के पास पहुंचे और थोड़े बैचेनी भरे स्वर में बोले – भइया! आज तो गजब हो गया! जितने मेहमानों को बुलाया था उतने आए नहीं हैं। पूरे 1000 लोगों के लिए इंतजाम किया था पर कैटेरर कह रहा था कि 400 से भी कम मेहमान आए हैं। अब मुझे समझ में नहीं आ रहा है कि बचे खाने का क्या किया जाए ताकि वह बर्बाद नहीं हो!
उनकी बात सुनकर रामाशीष व उनके परिजन चिंता में पड़ गए। रामशीष ने सोचा कि हम भले ही चटोरे हों पर 600 आदमियों का खाना तो नहीं खा सकते। फिर कुछ दिन पहले मेरी डायबिटीज बिगड़ी थी। अतः मुझे तो स्वयं पर बहुत कंट्रोल करना होगा।
फिर उन्होंने ठुड्ढी पर हाथ रखकर दिमागी घोड़े दौड़ाए। कुछ सेकेंड ऐसी ही मुद्रा में रहने के बाद बोले – भाई साहब! मुझे एक आइडिया आया है। मेरे घर से कोई दो किमी दूर गरीबों की बस्ती है। क्यों न हम वहां ले जाकर यह खाना उन लोगों में बांट दें। इससे बचे हुए खाने का सदुपयोग भी हो जाएगा और अन्न की बर्बादी नहीं होगी। वैसे भी आपका दिल बड़ा उदार है। क्यों न हम यह तरकीब आजमा कर देखें।
यह आइडिया सुनकर पुरुषोत्तम बोले – मुझे आपका आइडिया अच्छा लग रहा है। मैं अभी इस खाने को गरीबों की बस्ती में बांटने का इंतजाम करवाता हूं। इससे गरीबों का पेट तो भर जाएगा।
फिर पुरुषोत्तम ने बाकी बचे मेहमानों के लिए थोड़ा सा खाना निकलवाकर बाकी खाना गरीबों की बस्ती में भेजने की व्यवस्था की।
जब आधी रात के बाद गरीबों की बस्ती में रिसेप्शन में बचे खाने का वितरण हुआ तो भीड़ लग गई और करीब 600 लोगों का खाना आनन-फानन में वितरित हो गया। इस खाने की खुशबू और स्वाद को सूंघकर गरीबों के मन प्रसन्न हो गए और वे दिल से पुरुषोत्तम व नवविवाहित दंपती को हृदय से आशीर्वाद देते हुए स्वादिष्ट खाने पर टूट पड़े। बच्चों से लेकर बुजुर्गो ने वितरित करने वाले लोगों से मांग-मांगकर पेट भरकर खाना खाया। कुछ लोगों ने यह खाना संभालकर अगले दिन के लिए पैक करवाकर रख लिया।
इतने स्वादिष्ट खाने को लेकर उनके मन में जो भावनाओं का ज्वार उमड़ रहा था, वह चेहरे पर संतोष की चमक बनकर सबको आश्चर्यचकित किए जा रहा था।
यह सब देखकर सबकी आंखों में खुशी के आंसू छलक उठे।
(काल्पनिक कहानी)