चैप्टर—1
हम अपने घर से बाहर निकल रहे थे कि देखा एक छितराए हुए बालों वाला, पिचके हुए मुंह वाला, खूब बड़ी—बड़ी दाढ़ी जिसकी हो गई है, ऐसा एक इंसान हमारी ओर आ रहा है। हमें आंखो से थोड़ा कम दिखता है इसलिए हमने आंखें मिचमिचाकर देखा तो मालूम हुआ कि यह चेहरा तो जाना—पहचाना है। थोड़ी देर के लिए हमें अपनी सत्तर वर्ष की उम्र का कोई खयाल ही नहीं रहा। पता नहीं ऐसा क्यों लगा कि शरीर में किसी ने चाबी भर दी हो। हम दौड़ पड़े!
अरे! ये तो बचपन के अपने दोस्त अमीरचंदजी हैं! — हमें याद आया।
हम जैसे ही उनके पास पहुंचे तो वे कहने लगे— अरे! दूर ही रहिए! देखते नहीं हो हमारा शरीर सूख गया है। हवा का एक झोंका लगेगा कि हम उड़ जाएंगे! आप दौड़कर हवा मत उड़ाइए!
हमारे पैर में ब्रेक लग गए। हम वहीं खड़े हो गए।
अमीरचंदजी जैसे ही हमारे पास पहुंचे हमने सवाल किया— कितने साल के बाद आपको देख रहा हूं! यह आपने क्या हाल बना रखा है? इसे देखकर तो हमारा कलेजा फटा जा रहा है। ए दादा! लगता है कि कोई अमीरचंद नहीं हो, बल्कि कोई फकीरचंद हो! आप जहां रहे तो रहे लेकिन अपने शरीर को ऐसा क्यों सुखा लिया हे?
जब हमारा स्पीचनुमा सवाल खत्म हुआ तो उनके मुंह से मरियल सी आवाज निकली — कुछ मत पूछो भाईजी! आपको यह मालूम होना चाहिए कि हमने एक्टर बनने के लिए स्मार्ट दिखने की खातिर चार साल तक अन्न—जल छोड़कर यह स्लिम काया बनाई है।
हमने मन ही मन सोचा कि इनका दिमाग पागलखाने भेजने लायक हो गया है। लेकिन मन का शक दूर करने के लिए हमने एक और सवाल दागा — ऐसे हाल में तो आपको पागलखाने के डॉक्टर पकड़कर ले जाएंगे।
हमारी बात लगता है उनके कलेजे में तीर की तरह चुभ गई। वे तमककर बोले— क्यों भाई? हमारी देह स्लिम हो गई है, यह देखकर आपके कलेजे पर क्या सांप लोट गया? क्यों अपना कलेजा जला रहे हो? आपका दिमाग तो नहीं सठिया गया है, जो हमें पागलखाने का मरीज बता रहे हो?
जब हमें भरोसा हो गया कि उनका दिमाग ठीक है तो हम चुप हो गए। उनको प्रेम से अपने घर लिवा ले गए। नाश्ता—वास्ता कराया। उन्होंने मलाई वाले बिस्किटों पर ऐसे हाथ साफ किया मानो बरसों से अन्न का दाना ही मुंह में नहीं डाला हो। जब वे थोड़े फ्रेश दिखने लगे तो हमने पूछा— ए अमीर बाबू! यह आपको किसने उल्टी पट्टी पढ़ा दी है कि आपको 60 साल की उम्र में एक्टर बनने का चांस मिल जाएगा?
वे बोले — जानते नहीं हो कि अमिताभजी की उम्र कितनी है? अभी भी वे अपनी एक्टिंग की पारी बखूबी खेले जा रहे हैं। हम भी तो किसी से कम नहीं हैं। अगर एक्टिंग आती हो तो उम्र को कौन पूछता है? देवानंद को साठ के बाद भी चांस मिलते रहे और वे सदाबहार अभिनेता के तोर पर आज भी जाने जाते हैं। हम से भी बूढ़े—बूढ़े लोग मेकअप—शेकअप करके कमसिन हीरोइनों के साथ ठुमके लगाते दिखते हैं तो हम क्यों पीछे रहें? हम एक्टर लोगों के तीन गुण— फरेब, फंतासी और फाइटिंग अच्छी तरह से जानते हैं।
यह सुनकर हमारी हंसी छूटने लगी। पर हम भी कुछ कम नहीं थे। अपनी हंसी को हमने दबा दिया। मन ही मन हमने सोचा— ये क्या एक्टिंंग करेंगे? इनका शरीर तो सूख के मरियल पेड़ की तरह हो गया है। फिर इसकी छाती की पसलियां देखने के लिए कौन सौ रुपये बर्बाद करेगा?
लेकिन हमने अपनी भावनाओं पर काबू रखकर पूछा— आपको एक्टिंग का कोई अनुभव वगैरह है? या ऐसे ही मन के लड्डू खा रहे हो?
बस, हमारे यह कहनेभर की देर थी कि उनका पार एकदम से 100 डिग्री के पार कर गया। अरे! आप अपने यार को अच्छे से पहचान नहीं पाए। ठीक ही कहा गया है— घर की मुर्गी दाल बराबर! जानते हो? जब हमारा जन्म हुआ था तब हमने एक जोकर का रोल किया था। तब हम इस दुनिया में अपना सिर बाहर निकलते ही रोने लग गए थे और हमारा रोना सुन—सुनकर मां, बाबूजी सबलोग हंस—हंसकर लोटपोट हुए जा रहे थे।
इसके बाद वे कुछ देर रुके। फिर अपनी एक्टिंग की प्रतिभा के बारे में बताने लगे। वे बोले— जानते हो? हम बचपन में पढ़ाई की एक्टिंग बढ़िया करते थे। एक बार हम अपनी हिंदी की किताब में छुपाकर फिल्मी अप्सराओं के एलबम को निहार रहे थे कि बाबूजी प्रकट हुए। उन्होंने प्रेम से पूछा— हमारे साहबजादे क्या पढ़ रहे हैं? बस, हमारे मुंह से निकला — फिल्मी हीरोइनों को देख रहे हैं! इसके बाद तो बाबूजी का प्रेम ऐसे गायब हुआ मानो गधे की सिर पर से सींग! हमारी जमकर ठुकाई हुई! इस घटना से हमने यह सबक सीखा कि एक्टर लोगों को कभी भी भूलकर सच नहीं बोलना चाहिए!
उनके ऐसे उच्च और टुच्चे विचार सुनकर हमारे मुंह से निकला— हे राम! फिर हमने खुद को थोड़ा संभालते हुए कहा — आपका अनुभव आपको जरूर कामयाब बनाएगा!
क्रमश:
(काल्पनिक रचना)