रचनाकार : उत्तम कुमार तिवारी ” उत्तम ” , लखनऊ (उत्तर प्रदेश)
एक अदद बीबी चाहिए
प्रिय मित्रो हमको केवल एक अदद बीबी चाहिए ।
काली हो लूली हो कानी हो लगडी हो कैसी भी हो ।।
दिखने मे वो सुंदर हो चाहे वो कानी क्यौ न हो ।
चलती हो वो ढपक ढपक के तेज दौड़ने वाली हो ।।
हाथ हो उसके टेड़े मेडे बस बेलन मरने वाली हो ।
बस वो सुंदर हो मेरी संग जीवन भर रहने वाली हो ।।
चाहे वो दो चार दिनों मे ही छोड़ के जाने वाली हो ।
पढी लिखी वो ना हो फिर भी पीएच डी वाली हो ।।
मायके मे ज्यादा रहने वाली हो आने जाने को गाडी वाली हो
तीन पहिया वाली हो चार पहिया वाली बस गाड़ी वाली हो
पतिब्रता नारी हो पुरुषो से निजी दोस्ती रखने वाली हो
उठ कर चल न पाने वाली हो रोज संग मे माल घूमने वाली हो
चाहे मुह से वो गूंगी हो लेकिन कोयल के जैसी बोली हो
चाहे शरीर से टेड़ी मेडी हो बस दिखने मे सुंदर बाला हो
प्रिय मित्रो हमको केवल एक अदद बीबी चाहिए ।
ये मेरा विज्ञापन था मैरिज ब्युरों वालो को ज्ञापन था
एक अदद बीबी चाहिए हमको ऐसी बीबी चाहिए
उस दिन से मैरिज वालो का फोन आना बंद हुआ था।
आज का कवि सम्मेलन
कविता में क्या रक्खा है
केवल मंचों पर गाओगे
श्रोताओ से कह कह कर
केवल ताली बजवाओगे ।।
कुछ करो ठिठोली मस्करे
श्रोता सब सुन कर हँस पड़े
ऐसे कवि गोष्ठी की शान बढ़ाओ
तब तुम अच्छे कवि कहलाओ ।।
भगवान कसम खा खा कर
अपने चुटकले खूब सुनाओ
साहित्यिक कविता से क्या लेना देना
बस ताली खूब बजवाओ ।।
बैनर लगा कवि गोष्ठी का
महफिल सजी चुटकले बाजी का
साहित्यिक कविता समझ न आती
पब्लिक ताली फिर कहाँ बजाती ।।
जय शंकर सुमित्र नंद पंत चले गये
भारतेन्दु युग साहित्य बिलुप्त हुए
मैथिली शरण जी का साहित्य गुप्त हुए
जिनको पढ कर हम कवि हुए ।।
रमई काका हाथरसी हास्य कवि
इनकी सरल कविता पर सब हसते थे
श्रोता भी मंत्र मुग्ध होकर
इनकी कविता सुनते थे
ताली खूब बजाते थे ।।
श्री कविवर
कोऊ कवि जाने पहचाने है ।
कोऊ कवि भैया अनजाने ।।
कोऊ गावत है मंचन मा ।
कोऊ गलियन चौबारे ।।
कोऊ कवि है ऐसे भैया ।
जो समय नहीं दै पावत है ।।
कोऊ अपने नाम के आगे पीछे ।
बड़ी उपाधि लगावत है ।।
कोऊ है भईया राष्ट्र कवि ।
कोऊ कविराज बतावत है ।।
कोऊ पहिने धोती कुर्ता ।
कोऊ टाई लगावत है ।।
कोऊ पाठ करै छन्दन मा ।
कोऊ जैसे बतलावय ।।
कोऊ गावय आल्हा जैसे ।
कोऊ वियोग सुनावत है ।।
कोऊ कवि रस श्रृंगार करे ।
कोऊ भक्ति मार्ग बतावत है ।।
कोऊ अपने गीतन ते ।
सबका बहुत हसावत है ।।
कोऊ अपनी रचना ते ।
सबका बहुत रोवावत है ।।
कवियन की महिमा बहुतै है ।
उत्तम कवि बतलावत है ।।
हुस्न तेरा समंदर
हुस्न तेरा समंदर
आँखें तेरी मधुशाला
पी लू तेरे अधरों से
ऐसा हूँ मै पीने वाला
जाम पे जाम टकराएंगे
नशे मे दोनो डूबेंगे
न तुझको होश रहेगा
न हम उठ पाएंगे ।।
ये ह्रदय है तेरा मैखाना
मै जा कर उसमे बैठू
तू नशे मे मुझको करदे
मै फिर बहार न जा पाऊ ।।
नशे मे दोनो चलते है
डगमग डगमग होते है
हम तुम दोनो हाथ पकड़ कर
धीरे धीरे चलते है ।।
उठते है मैखाने से
अपने अपने घर जाने को
थोड़ी दूर मे उतर गई
फिर लौट पड़े मैखाने को ।।
साकी ने पिलाया जो आँखों से
नशे मे इतना डूब गये
जब तक भरी रही बोतल
हम जाम पे जाम पीते गये ।।