एक छोटा सा शब्द है आंटी! लेकिन मैं इसे काफी संजीदगी से लेती हूं! अंग्रेजी में भले ही इसका मतलब चाची, फूफी कुछ भी हो पर मेरी डिक्शनरी में इसका मतलब है – कोई 40 बरस से उपर की महिला, कम से कम दो बच्चों की अम्मां, एक दो सफेद होती लटें और काया का जुगराफिया 40-50-40! अब इस परिभाषा के हिसाब से मैं आंटी तो नहीं कहला सकती! देखिए न, मेरी उमर 40 से कम है, मेरी हाल ही शादी हुई है अतः बच्चे होने का तो सवाल ही नहीं, फिर काया का फिगर ऐसा है कि मैं नए जमाने की हेरोइन कैटरीना से भी दुबली और गुजरे जमाने की काॅमेडियन टुनटुन से भी पतली हूं!
जब इतनी कसौटियों पर मैं खरा नहीं उतर पा रही तो भी उस सब्जी वाले ने बिना सोचे-समझे मुझे आंटी कह दिया! लानत है ऐसे बेअक्ल और नामुराद और सब्जी वाले पर जिसने केवल 21 बसंत देखने वाली, छरहरी काया की स्वामी और ब्यूटिफुल गर्ल को आंटी कह दिया! क्या उसे आंटी का मतलब नहीं पता? क्या उसके घर-परिवार में ऐसी कोई लेडीज नहीं जिसे वह आंटी कह सके? क्या वह नारी सम्मान का विरोधी है, जो मुझे आंटी कहकर अपमानित करना चाहता है! क्या उसकी महिला मंडली से कोई दुश्मनी है? क्या उसने महिलाओं का उर्वशी, तिलोत्तमा, शकुंतला आदि जैसा रूप नहीं देखा? क्या उसे मेरा साफ रंग देखकर जलन हो गई? रंगभेदी कहीं का!
अब मैं भले ही थोड़ी सांवली हूं पर मूरत मेरी मोहनी है! वो बात अलग है कि मैं थोड़ी सी फेयर ऐंड बबली क्रीम चेहरे पर पोत लेती हूं और थोड़ा सा लाइकमी पाउडर लगा लेती हूं, और चेहरे पर हमेशा मुस्कान बनाए रखने के लिए होंठों के एक छोर से दूसरे छोर तक गाढ़ी लाल लिपस्टिक चिपका लेती हूं। आंखों में भले ही मुस्कराहट नहीं दिखे पर मैं मस्करा जरूर लगा लेती हूं! कपड़े भी माॅड-शाॅट पहनती हूं – आंटियों की तरह सलवार-सूट और साड़ी नहीं! मेरे कपड़े टीनएजर बच्ची के नाप के होते हैं। फिर भी मुझे उसने आंटी कह दिया, मैं उस सब्जी वाले को साफ-साफ बताना चाहती हूं – तू भले ही मुझे कुछ भी कहे, न मैं आंटी हूं ए न मैं आंटियों की तरह रहती हूं और न भविष्य में बनूंगी!
दरअसल, मैं इतना सब क्यों लिख रही हूं। क्योंकि मैंने आंटी शब्द की स्वरचित परिभाषा तय कर रखी है। मैं उस सब्जी वाले को बताना चाहती हूं कि आगे से मुझे भूल से भी आंटी कहा, तो उसकी खैर नहीं!
हुआ यूं कि मैं सुबह 7 बजे सब्जी लेने गई थी। मैंने एक किलो आलू लिए, दो पाव प्याज और पाव भर टमाटर! क्योंकि मेरे नए-नवेले हसबैंड इतना ही कमाकर ला पाते हैं कि मैं उसमें इतनी ही सब्जी खरीद सकती थी! शायद, सब्जी वाले को यह बात एनी हाउ पता चल गई होगी कि मेरे हसबैंड की इनकम कम है। आउट गोइंग यानी खर्चे ज्यादा हैं! फिर उफ! उपर से ये कमरतोड़ महंगाई! 20 रुपये किलो से कम किसी सब्जी के रेट नहीं! इससे सस्ते तो काजू पड़ते हैं!
आप शायद चौंक गए होंगे? अच्छा जरा हिसाब लगाइए 20 रुपये में आपने एक किलो आलू लिए! तराजू में कितने आलू आए? यही कोई 3-4 या ज्यादा से ज्यादा पांच! पर यदि आपने 1000 रुपये वाले काजू लिए तो 20 रुपये के काजू लेने पर उनके कितने नग आएंगे? यही कोई 8-10! तो कैसी लगी मेरी मैथेमेटिक्स! है न हिसाब बढ़िया? हूं न मैं हिसाब-किताब में तेज? माइंड ब्लोइंग!
तो इतनी इंटेलिजेंट और हिसाब-किताब में पक्की मेरे जैसी गर्ल को कोई आंटी कैसे कह सकता है?
सब्जी वाले की वह गलती मेरे गले की फांस बन गई है। उसे मुझे आंटी कहने में भले ही दो सेकेंड नहीं लगे हों, पर मैंने इसे दिल पर ले लिया है! मैं काफी हार्ट हुई हूं! इतनी ज्यादा हार्ट कि मैं किसी वकील से बात करने की सोच रही हूं! शायद वह मेरी आंटी कहने, नहीं सार्वजनिक तौर पर आंटी कहने और मुझे अपमानित करके हुई मेरे मान की हानि को रिकवर केस के जरिए करा सकेगा और मुमकिन है कि कोर्ट मुझे बतौर हर्जाना 15-20 लाख रुपये दिला दे!
अब मैं सपना देख रही हूं कि वे 15-20 लाख रुपये मिल जाएंगे, तो मैं कैसे ठाट-बाट से रहूंगी! मेरे हसबैंड को नौकरी करने की बाॅस के सामने दुम हिलाते हुए खड़े रहने की जरूरत नहीं रह जाएगी! हम दोनों फिर 6 बाई 6 का पलंग लेंगे और उस पर चैन से सोया करेंगे! एक-दो बाइयां रख लेंगे!
बाइयों के लिए मैं पहले ही जो कोड आफ कंडक्ट जारी करूंगी, उसमें सबसे पहला रूल यही होगा कि वे मुझे भूलकर भी आंटी नहीं कहेंगी! यदि मुझे उन्होंने भूल से आंटी कह दिया तो मैं सबसे पहले उन्हें केवल दो दिन की दिहाड़ी देकर नौकरी से निकाल दूंगी और फिर थोड़ी ढंग की, एजुकेटेड और अच्छी अंडरस्टैंडिंग वाली बाइयां तलाशूंगी!
वह दुष्ट सब्जी वाला तो वकील रख नहीं पाएगा! उसे मैं जैसे ही नोटिस भेजूंगी तो हो सकता है वह सकपका जाए! वह भय से थर-थर कांपने लगे, हो सकता है वह मेरे घर पर माफी मांगने आ जाए! मैं उसके माफी मांगने से कोई पिघलने वाली नहीं! मैं कोई कुल्फी या आइसक्रीम तो नहीं जो जरा सी माफी की आंच से पिघल जाउं! मैं उसे बता दूंगी कि मैं लक्ष्मीबाई से कम नहीं हूं! उन्होंने अंग्रेजों से लोहा लिया था, मैं तुम जैसे सब्जी वाले, अंग्रेजी परस्त से जमकर सब्जी-भाजी क्या, लोहा भी ले सकती हूं!
मैं उसे अंग्रेजी परस्त इसलिए कह रही हूं क्योंकि उसने मेरे खिलाफ अंग्रेजी का शब्द आंटी इस्तेमाल किया! अंग्रेजों का चमचा! अंग्रेजों से सीखी शब्दावली बोलता है! अरे बहन कह लेता, दीदी कह लेता तो तेरा क्या चला जाता? भारतीय परंपराओं में तमाम अच्छे और महिलाओं के लिए सम्मानजनक शब्दों को दरकिनार करके मुझे आंटी कहने वाले मैं तेरे खिलाफ मानवाधिकार आयोग में भी अपील करूंगी! मैं ईंट से ईंट बजा दूंगी! मैं नारी सशक्तिकरण के पुरोधाओं से अपील करूंगी कि वे मुझे न्याय दिलवाएं!
मैं अपने जख्मों पर मरहम लगाने वाला ऐसा डाॅक्टर तलाशूंगी जो मेरे उस घाव को जल्द भर सके जो मुझे उस सब्जी वाले के आंटी कहने से लगा है! इस घाव को भरने की कोई दवा है कि नहीं? मैं अभी अपने एंड्राइड फोन पर गूगल बाबा को सर्च करके पता करती हूं!
यही नही, मेरे पति शाम को जब आफिस से थके-मांदे होकर निचुड-पिचुडकर घर लौटंगे तो मैं पहले में उन्हें ए कप टी पेश करूंगी! दो-चार बिस्किट भी दूंगी! फिर प्यार से पूछूंगी क्या मै आंटी लगती हूं? यदि उन्होंने न कह दिया तो फिर मैं साक्षात दुर्गा बन जाउंगी और उस सब्जी वाले की जमकर ऐसी-ऐसी शिकायतें करूंगी कि मेरे पति के खून में उबाल आ जाए! मैं तब इस बात का प्रत्यक्ष गवाह बनूंगी कि खून में आए इस उबाल से वे कितना अधिक बवाल मेरे लिए कर सकते हैं!
अभी मैं इन खयालों में खोई हुई थी कि मेरे हसबैंड का आफिस से फोन आ गया कि उन्हें आफिशियल टूर पर टिम्बकटू जाना है। उनका फोन आते ही मैं फिर से उसी सब्जी वाले से सब्जी जा रही हूं। अब क्या करूं? मेरे घर से दो किमी के दायरे में यही इकलौती सब्जी वाला है, जाना ही पड़ेगी! भले ही जी कितना ही कड़वा हो, उसी से काम चलाना ही पड़ेगा!
अब मैंने थैला उठा लिया है। उसी सब्जी वाले के सामने सब्जी लेने पहुंच गई हूं! मैं रोष से भरी हुई हूं! मेरा रोम-रोम गुस्से से सुलग रहा है! मैं सोच रही हूं कि यदि उस सब्जी वाले ने दोबारा मुझे आंटी कहा तो यही थैला फेंक कर उसके मुंह पर मार दूंगी! मैंने अपनी तमाम भावनाओं को दबाते हुए कहा- भइया! एक किलो भिंडी देना!
यह सुनते ही वह सब्जी वाला जो बोला, उस पर मुझे यकीन नहीं हुआ! मेरे कान जिस शब्द को सुनने को बैचेन हो रहे थे, उसके मुंह से ठीक वहीं शब्द निकला- दीदी! अभी देता हूं!
सुना आपने? उसने मुझे दीदी कह दिया! मेरे द्वारा उसको भइया कहने की लाज रख ली! अब मुझे याद आया- मैंने सुबह उसे अंकल कहा था! मैंने कहा था कि – अंकल! एक किलो आलू , दो पाव प्याज और पाव भर टमाटर देना! तभी तो उसने मुझे आंटी कहा था! उफ्फ! मैंने उसे बेकार में कोसा! वह मेरा व्यवहार ही तो मुझे लौटा रहा है! उसके टिट फाॅर टैट वाले रवैये से मुझे इन्सपाइरेशन मिली है – जो तू बोए पेड़ बबूल का, आम कहां से खाय!
यदि आपको किसी से संबोधन में मीठा शब्द चाहिए तो आप भी सही शब्द बोलिए! सुनने वाला भी खुश, और कहने वाला भी खुश!
(काल्पनिक रचना)