रचनाकार : हेमन्त पटेल, भोपाल (मप्र)
विक्रांत – हां सर, वह जाकर नहीं देख सकता, लेकिन जब यह स्थिति है और इस बारे में प्रषासन को पता है तो वह हर दो माह में समीक्षा तो कर सकता है।
अजय- समीक्षा तो होती है।
विक्रांत- नहीं सर वह समीक्षा नहीं है वह केवल खाना पूर्ती के लिए बैठक होती है। कलेक्टर, सरकार और जनता के बीच पुल का काम करता है। और कलेक्टर क्यों भूल जाता है कि वह भी इसी समाज का हिस्सा है। यहीं से निकला है। कलेक्टर तो राजनेता की तरह चुनाव जीत कर नहीं आता, पर वह जनता का नाक-कान होता है। यही नाक-कान जब सचिव स्तर पर पहुचते हैं, तो नीतियों का निर्माण करते हैं। कलेक्टर-प्रषासन को चाहिए वह बैठक से ज्यादा औचक निरिक्षण, जनसंवाद में विष्वास करें। अपनी ही टीम से बचे। अगर कुछ करने की इच्छा है, तो सब कुछ किया जा सकता है। तब निरीक्षण भी हो सकता है, और बजट का आवंटन भी।
अजय- विनय जी (ड्रायवर) कहीं होटल पर गाड़ी रोकिए चाय पिएंगे। आप चाय लेंगे।
विक्रांत- नहीं सर आप लीजिए।
अजय- आप चाय नहीं लेते हैं, क्या?
विक्रांत- ऐसा नहीं है।
विनय जी तीन चाय लाइए। (चाय आती हैं तीनों चाय पीते हैं)
अजय- तो आप ज्यादा संवेदनशील हैं।
विक्रांत- नहीं सर, मैं इंसानियत का पक्षधर हूँ, मैं समझता हूँ हम सबके भीतर का इंसान खत्म नहीं होना चाहिए। इंसानियत खत्म, तो आत्मा खत्म, आत्मा खत्म तो आदमी जिंदा लाश है। जब ईश्वर आपको काबिल बनाता है, तो उसका मकसद होता है। आप अपने से कमजोर की मदद करेंगे। ताकि इस धरती को उसके हिसाब का बना सकें।
(चाय खत्म हो चुकी है) तीनों गाड़ी में बैठते हैं।
अजय- हँू…! नौजवान आपकी बात में दम तो है। क्या आपका नम्बर मिलेगा। कभी कोई एड से रिलेटेड कोई काम हुआ तो याद करेंगे।
विक्रांत- जी जरूर…, लिखिए….9425….04
एक सप्ताह बाद
विक्रांत के पास वाट्सऐप आता है। वह देखता है यह डीपी तो उसी शख्स की है जो पुणे हाइवे पर मिला था। एक फोटो कटिंग लोड होती है।
भुवनेश्वर। कमिश्नर अजय द्विवेदी ने भुवनेश्वर कलेक्टर सहित अन्य जिलों के कलेक्टर्स की बैठक लेकर जिला चिकित्सालयों के औचक निरीक्षण के निर्देश दिए। शासकीय स्कूलों का भी औचक निरीक्षण होगा। अच्छी बात यह है कि कमिश्नर ने इसे कलेक्टर्स की सीआर से जोड़ दिया है, जिसे राज्य सरकार ने मंजूर कर लिया है।
(फोटो कैप्शन) कमिश्नर अजय द्विवेदी लक्ष्मी के साथ हैं, उन्होंने लक्ष्मी को गोद लिया है वह उनके दो बच्चों के साथ ही स्कूल में पढ़ेगी।
विक्रांत ने तत्काल रिप्लॉय किया।
Thanks sir! आपका बहुत-बहुत धन्यवाद।’मैंने प्रशासनिक अधिकार होते हुए कभी किसी का नम्बर नहीं मांगा था। पहली बार लगा बदलाव कहीं पर भी रहकर किया जा सकता है। शायद इसे ही इंसान के भीतर इंसान होना कहते हैं।
(काल्पनिक रचना)