रचनाकार : शबनम मेहरोत्रा, कानपुर
आशा ने नव आस जगा दी
आशा ने नव आस जगा दी,कौन हमें अब रोकेगा ।
हर बाधा को ठोकर मारूँ ,कौन हमें अब टोकेगा ।
नभ पर विचरण करूँगी उन संग,
थाम के उनका हाथ ।
कभी नहीं अब छोडूंगी मैं,जीवन भर यह हाथ ।
एक नया अनुभव मैं पाई,यह उनका उपहार ।
हद से ज्यादा मैं करती , अपने चंद्र से प्यार ।
ईश्वर की इच्छा को हंस कर ,करेंगे दोनो पूरी ।
नहीं अधूरा अब वो रहेगा,रहूँगी मैं न अधूरी ।
प्रणय निवेदन उनका मैंने, कर लिया है स्वीकार ।
मर्यादा में बंधी हुँ फिर भी, हो गयी हूँ तैयार।
थी दबा कर रखी भावना,अब न बन्ध कर रहने दूँगी।
साथी अब एक आन मिला है, उनके संग अब उड़ने दूँगी
आशा ने “शबनम”से बोली,जो माँगे वह देदो ,
नई उमंगों नई तरंगों से जीवन का,हर एक रंग तो ले लो ।
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हमारा है यह हिंदुस्तान
गंगा यमुना और हिमालय है इसकी पहचान
हमारा है यह हिंदुस्तान हमारा है यह हिंदुस्तान
भिन्न भिन्न जाति धर्मो के लोगों
का है बसेरा
अलग अलग रंगो से सबने एक
ही चित्र उकेरा
इस हिंदुस्तान के खातिर सारे दे देंगे जान
हमारा है यह हिंदुस्तान हमारा है यह हिंदुस्तान
हिंदु मुस्लिम सिख ईसाई का
प्यारा ये घर
कहीं प्रार्थना,गुरुवाणी और
अजान ,प्रेयर
हम सब भारत वासी का है ये तिरंगा शान
हमारा है यह हिंदुस्तान हमारा है यह हिंदुस्तान
भारत पर जब आई मुसीबत
सबने ताना सीना है
देश की खातिर नहीं सोचते
मरना है या जीना है
देश की खातिर कितने शबनम हो गए है कुर्बान
हमारा है यह हिंदुस्तान हमारा है यह हिंदुस्तान
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जमाना भूल जायेगा
मुझे मालूम है एक दिन जमाना भूल जायेगा
हंसी की बात जब आयेगी मेरा नाम आएगा
हमारे गीत ग़ज़लों की अभी चर्चे है शहर में
हमारे बाद क्या मालूम कोई फिर दोहराएगा
किया है हमने जिस पे अपने गीतों की बरसाते
कभी भूले से क्या वो शख्स ये भी गुनगनाएगा
बहुत भूली बिसरी बातें मुझको याद आती है
बड़ी आसानी से क्या वह लोग भूल पाएगा
हिकारत की नज़र से देखते है लोग ऐ शबनम
मगर क्या सामने आकर वो नज़र मिलाएगा
दुआ करता हूँ
तुमसे मिलना हो दिन रात दुआ करता हूँ
इसी उम्मीद में मैं हर रात जगा करता हूँ
तुम्हारे हुस्न के चर्चे हैं शहर में गलियों में
अब हरेक मुँह से तारीफ सुना करता हूँ
तुमको मालूम है की आज नही वर्षों से
तुम्हारे प्यार के खातिर जिया करता हूँ
हमारे वास्ते ही तुम बदनाम न हो जाओ
इसलिए खुद अपना लहू पिया करता हूँ
तुम्हारे शहर में गुज़ारा न होगा शबनम
अब किसी और शहर को चला करता हूँ
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अभी इन्कार करोगे
जनता हूँ तुम अभी इन्कार करोगे
एक दिन हमसे मगर प्यार करोगे
बाधाएँ अभी सामने हैं तेरे ज़्यादा
इतना यक़ीन है इसे पार करोगे
इतना यक़ीन है की मान जाओगे
प्यार का एक दिन इकरार करोगे
फुरकत की आग में जल रही हूँ मैं
खुद को भी ऐसे ही बेकरार करोगे
शबनम समय तो पास है फिक्र न करो
उम्मीद है की प्यार बेशुमार करोगे
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शबनम मेहरोत्रा : परिचय
जन्म – सम्भ्रांत कुलीन व्यापारिक परिवार में 26 अगस्त 1949 में मध्य प्रदेश के जबलपुर नगर में द्वितीय पुत्री के रूप में ।
माता – स्व. नीना सेठ
पिता – स्व. मदन मोहन सेठ
पति – स्व. प्रेम नारायण मेहरोत्रा, पाँच सितारा होटल मेघदूत, मेहरोत्रा बॉटलिंग प्लांट ( पेप्सी) ( मगरवारा ) , AES Exports ( उन्नाव ) , चमन धर्मशाला चौक , पूर्णा बिहारी होलसेल मार्केट चौक कानपुर, बाबू बिहारीलाल धर्मशाला बिठुर, इंद्रा मिनी शुगर प्लॉंट रायबरेली
पति – Business Tycoon , एडवोकेट, ( Member of Bar Association ) शिक्षाविद ( Honorary Internationals law) क्राइस्ट चर्च कालेज कानपुर , रिलायंस एजेंसी यू पी एंड बिहार, डिस्ट्रिब्यूटर गोदरेज होलसेल एंड रिटेल कानपुर.
पुत्र – चि. प्रशांत मेहरोत्रा , चि. गौरव मेहरोत्रा
पुत्री – सौ. नूपुर कपूर
शिक्षा – सेंट नॉर्बट कॉन्वेंट गर्ल्स हाई स्कूल
बी एस सी – मोहनलाल हरगोविंददास कॉलेज ऑफ़ साइंस एंड होमसाइंस ( प्रथम )
शादी- 1968 – गृहणी
प्रकाशित कृतियाँ- प्रेम पथ ( काव्य संग्रह)
भावांजली – काव्य संग्रह ( वान्या प्रकाशन )
शबनमी गीत – गीत संग्रह
लोकगीत- लोकगीत संग्रह
साझा संग्रह- स्वर्णाभ (काव्य )
साझा संग्रह- दौर ए हयात ( लघुकथा )
साँझा संग्रह- कथालोक ( लघुकथा )
साँझा संकलन – नूर ए ग़ज़ल
साँझा संकलन- सरस्वती विद्या वारदानी
साँझा संकलन- हमारे राम
( 1 – ग़ज़ल के मोती संग्रह )
( 2_ग़ज़ल संग्रह- अश्कों के मोती )
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