चैप्टर—1
बिल गेट्स ने बरसों पहले एक जबर्दस्त लाइन दुनिया के आलसियों के बारे में कही थी — यदि मुझे कोई काम सौंपना होगा तो उसे मैं सबसे आलसी आदमी को सौंपूगा! क्योंकि आलसी व्यक्ति उसे आराम से करने का रास्ता ढूंढ निकालेगा! कितनी पते की बात थी बिल जी की! वो भी बिना कोई बिल थमाए हुए!
और यह सच भी है आलसी आदमी हमेशा यह सोचता है कि मुश्किल से मुश्किल काम को कितनी जल्दी पूरा किया जाए ताकि वह बाकी बचा समय सोने में बिता सके। इसी विचारधारा पर यदि गंभीरता से विचार किया जाए तो लगेगा कि दुनिया में जो भी काम सब आसानी से होते दिख रहे हैं वे सब आलसियों के ही आविष्कार हैं! बानगी देखना चाहेंगे — 10 हजार लोगों को मेल भेजना है। बस कंप्यूटर पर बैठ गए दो—चार आड़ी—तिरछी लाइनें टाइप की और हजारों लोगों के ई—मेल एड्रेस डाले और सेंड का खटका दबाया कि मेल गया 10 हजार लोगों के पास! अब न संदेश भेजने के लिए कबूतरों को प्रशिक्षित करने की जरूरत और न डाक खाने वालों की! ये दोनों पुराने जमाने के साधन हो चुके हैं।
कबूतरों का दाना—पानी इतना महंगा हो गया है कि उन्हें पालना तो दूर उनके दर्शन हो जाएं यही बहुत है। फिर उन्हें ट्रेनिंग का सिरदर्द अलग! रही बात डाक खाने वालों की तो ई—मेल के अपनाने से पोस्टआफिस आने—जाने, वहां कतारबद्ध होकर पोस्टमास्टर की दया दृष्टि की कामना करते हुए दिन बर्बाद करने से तो बच गए!
तबीयत ठीक नहीं है! बुखार आ रहा है। बस, एक गोली खाई! ठीक हो गए! अब न काढ़े—फाढ़े को बनाने का झंझट और न ही जंगल में जाकर जड़ी—बूटियां तलाशने की।
वैसे पहले की बात और थी कि लोग पहले जंगल की सैर पर जाते थे और वहां किसी जंगली हसीना से अपनी आंखें चार कर आते थे और नतीजतन जंगल ही में मंगल का जन्म हो जाता था या शिकार करते—करते खुद शिकार बन जाते थे!
अब न जंगल रहे और न जंगल के राजा! हजार—दो हजार जो भी शेर—चीते बचे हैं वे बेचारे इंसान के डर से ऐसे दुबके रहते हैं कि उसका क्या शिकार करेंगे क्योंकि उनका इंसान से आमना—सामना होने पर खुद शिकार बन जाने का खतरा हो जाता है!
अब घर में ही देख लें —कितने सारे आविष्कार हैं जो जरूर आलसियों की देन हैं। गैस चूल्हा हो, या माइक्रोव ओवन, रोशनी के बल्ब हों या कूलर सब एक खटका दबाओ बस आनंद ही आनंद! न पुराने जमाने की चूल्हा जलाने के लिए लकड़ी लाने, तेल लाने और चूल्हा जलाते समय उठने वाले धुएं से आंखें फोड़ने की जरूरत!
फिर उज्ज्वला एलपीजी स्कीम से हर किचन काली—काली की जगह उजली—उजली होने लगी है, साथ ही महिलाओं का समय बचने लगा है और वे सास—बहू के सीरियल देखते हुए और बिना ज्यादा परेशान हुए चूल्हा—चक्की आसानी से हैंडल कर सकती हैं! है न बढ़िया!
सास—बहू के सीरियल से याद आया कि कथित बुद्धू बक्सा यानी कि टीवी भी कितना अच्छा आविष्कार है। इसे भी किसी महा आलसी का आविष्कार कहा जाए तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। दूर के दर्शन कर लो बिना कहीं आए—जाए! अहमदाबाद में भारत—पाक का क्रिकेट मैच है, घर बैठे ही देख लो। न टिकट खरीदने की मारा—मारी और स्टेडियम फुल होने का चक्कर!
फिर ठंड आने को है। रजाई में घुसकर रिमोट से पट—पट करते रहो, 500—600 चैनल एक रिमोट से हैंडल कर लो। न पहले की तरह टीवी के कान उमेठने का झमेला और न ही रजाई से बाहर निकलने की जहमत!
इससे भी बड़ी बात यह है कि अब टीवी चलाने के लिए एंटीना लगाने की जरूरत नहीं पड़ती। नहीं तो पहले के जमाने में वीक सिग्नल होने के कारण दो—दो पहलवानों को एंटीना घुमाने में लगना होता था और दस मिनट का मैच देखने के लिए कोई आधा घंटा पसीना बहाना होता था!
क्रमश:
(काल्पनिक रचना)