चैप्टर—4
देहरादून के पास की सराय में छिपे—छिपे रहते हुए अशोक को छह दिन हो गए। वह उधेड़—बुन में था कि क्या किया जाए, क्या नहीं किया जाए। तभी उसे लगा कि कुछ समय के लिए उसका बाहर जाना ठीक रहेगा।
अत: वह यह विचार करके अपना घुटनों तक लंबा कोट और मुंह को मफलर से ढांक कर बाहर निकल आया। करीब दो किलोमीटर आगे पैदल चलकर पहुंचने के बाद उसे एक मंदिर में दिखा। उस मंदिर के प्रांगण में बीस—पच्चीस लोग बैठकर पंडित दीनानाथ मिश्र से नृसिंह भगवान और प्रह्लाद का प्रसंग सुन रहे थे। मिश्र श्रोताओं को बता रहे
थे —
प्रह्लाद ने हिरण्यकश्यप से कहा कि खंभे में भगवान हैं। पर वे किसी को दिखते नहीं। सिर्फ उन्हीं को दिखते हैं जो उनकी सच्ची भक्ति करे। यह सुनकर हिरण्यकश्यप क्रोधित हो गया और उसने क्रोध में भरकर अपनी गदा उस खंभे पर दे मारी! खंभे के टूटते ही उसमें से क्रुद्ध नरसिंह भगवान निकले और उन्होंने हिरण्यकश्यप का वध अपने नाखूनों से कर दिया।
यह प्रसंग सुनकर अशोक को लगा कि उसकी समस्या का हल मिल गया है। सच तभी सामने आता है जब उसके बारे में गहराई से सोचा जाए। हर चीज की छानबीन की जाए। वह तभी उजागर होता है जब झूठ के आवरण पर कसकर प्रहार किया जाए। यह सब सोच—सोचकर उसके मन में कुछ हिम्मत आई और वह प्रसंग समाप्त होने के बाद प्रसाद लेकर सराय आ गया।
फिर उसने तमाम घटनाओं के बारे में सोचना शुरू किया। उसे ध्यान आया वह फाइवस्टार होटल का कमरा जहां आठ दिन पहले उसकी पाकिस्तानी क्रिकेट टीम के कप्तान आरिफ कुरैशी से बातचीत हुई थी। आरिफ ने उसे अपने ब्रीफकेस में से एक सोने का हार दिखाने से पहले संतरे का जूस पिलाया था। पता नहीं क्यों अशोक को उसका स्वाद नहीं भाया और उसने दो—तीन घूंट पीने के बाद जूस वहीं कालीन पर ही थूक दिया था। तभी कुरैशी ने उससे पूछा था— मेरे दोस्त! बताओ इसकी कीमत क्या होगी? तब अशोक इतना ही कह पाया था — पचास लाख!
फिर इसके बाद क्या हुआ, उसे कुछ याद ही नहीं आ रहा था। अशोक ने बहुत माथापच्ची की पर कुछ समझ में नहीं आ रहा था। ऐसे में उसने सोचा कि क्यो न अपने पापा को फोन लगाकर कुछ जानने की कोशिश की जाए क्योंकि इस घटना के बाद जब उसने अपने आप को खुद के घर में पाया था तो पापा ही ऐसे शख्स थे जो कि उसके ठीक सामने मौजूद थे और उसे पीने के लिए पानी लेकर आए थे।
अशोक ने कंपकंपाते हाथों से मोबाइल फोन में अपने पापा का नंबर दबाया। फोन लगते ही उधर से गरजदार आवाज आई — कौन? अशोक? अरे बेटा यहां मेरी जान हलक में अटकी हुई है और तू अब जाकर फोन लगा रहा है? यै मीडिया वाले तेरे बारे में जाने क्या—क्या खबरें उड़ा रहे हैं! हमने तो तेरे गायब होने की पुलिस में रिपोर्ट भी लिखा दी है पर उन्हें भी कुछ पता नहीं चला। तू ठीक तो है बेटा? कहां है तू? जल्दी बता!
अपने पापा की आवाज सुनकर अशोक की आंखों में आंसू आ गए। वह कंपकंपाते स्वर में इतना ही बोल सका— पापा! मैं मुंह छिपाकर भागा—भागा फिर रहा हूं। मुझे कुछ याद नही आ रहा कि मैं फाइव स्टार होटल में पाकिस्तानी कप्तान से मिलने के बाद घर कैसे पहुंच गया था?
शमशेर — बेटा! तुझे संगीता लेकर आई थी। अर्ध बेहोशी की हालत में। मैंने सोचा कि शायद तूने पी रखी है। अत: तेरे लिए नींबू पानी लेकर आया था नशा उतारने के लिए!
अशोक — पापा! आपको तो मालूम है कि मैं बिलकुल नहीं पीता। पर उस दिन कुरैशी ने मुझे संतरे का जूस आफर किया था। उसका स्वाद मुझे अच्छा नहीं लगा और मैंने वहीं उसे थूक दिया। इसके बाद क्या हुआ? मुझे मालूम नहीं!
क्रमश:
(काल्पनिक कहानी)