चैप्टर—3
उसका रौद्र रूप देखकर पिता रजत श्रीधर समझ गए कि बेटी बेहद तनाव में है और उसे यह कतई बर्दाश्त नहीं हो पा रहा है कि अशोक सट्टेबाजी में लिप्त था।
वे अपनी बेटी की दर्द भरी सिसकियां सुनकर फौरन उसके कमरे में आए और उसके सिर पर हाथ फेरते हुए बोले — बेटा! मत रोओ। अभी यह खबर पुख्ता नहीं है। अभी तो मामले की जांच होगी तभी सामने आ पाएगा कि सच क्या है। ऐसी दुखी और मायूस मत बन बेटा! तुम्हें दुखी देखकर मेरा मन कितना दुखी हो जाता है, यह तो तुम जानती हो।
संगीता को अपने पिता की समझाइश भरे अंदाज में कही गई इस बात से थोड़ा सुकून पहुंचा। वह अपनी आंखें पोंछती हुई बोली — भगवान करे यह खबर झूठी साबित हो पर अभी तो मामला गरम है। मैं भी किसे अपना जीवन साथी बनाने चली। जो अपने देश का नहीं हो सका वह मेरा कैसे हो सकेगा? मेरी तो जिंदगी बर्बाद हो गई।
श्रीधर — बेटा! इतना ज्यादा मत सोचो! कभी—कभी इंसान से भूल हो जाती है। हालांकि मैं मानता हूं कि यह बहुत बड़ी भूल है कि अशोक ने पाकिस्तान के कप्तान से डील करने की कोशिश की। पर वह डील पूरी तो नहीं हुई न! न कोई मैच हुआ। न कोई जीता और न ही कोई हारा! फिर जांच से पूरा सच सामने आ ही जाएगा। तुम न तो मायूस होओ और न ही निराश! मीडियावाले तो यूं ही किसी के बारे में कुछ भी उड़ाते रहते हैं ताकि उनका सर्कुलेशन बढ़ जाए।
पिता—बेटी में यह विचारों का आदान—प्रदान चल ही रहा था कि संगीता की मम्मी किचन का काम छोड़कर कमरे में आ गईं। वे बोलीं — बिटिया! मालूम है न कि अशोक की रगों में इंडियन आर्मी के रिटायर्ड कर्नल शमशेर कुशवाहा का खून है। ऐसे में मुझे पूरा यकीन है कि अशोक ऐसी हरकत कर ही नहीं सकता। यह बात ठीक है कि उसका खेल इन दिनों अच्छा नहीं चल रहा है पर मुझे लगता है कि वह मानसिक रूप से कुछ परेशान है और गहरे दबाव में है। भगवान करे यह संकट जल्द ही दूर हो जाए और दूध का दूध पानी का पानी हो जाए तो मैं विंध्यवासिनी देवी को पूरे पांच सौ रुपये का प्रसाद चढ़ाउंगी!
इधर, अशोक के बिना कोई जानकारी दिए गायब हो जाने के बाद मीडिया में कोहराम मच गया। वे भांति—भांति की कुछ मनगढ़ंत और कुछ बेमेल स्टोरीज अशोक के बारे में छापने लगे। एक अखबार ने तो अशोक से मिलती—जुलती शक्ल वाले एक शख्स का फोटो छापकर लीड स्टोरी बना दी कि उसे आखिरी बार दिल्ली के अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर देखा गया था। शायद वह फ्लाइट से पाकिस्तान निकल गया है। कुल मिलाकर जितने अखबार उतनी ही अलग—अलग तरह की कहानियां!
अशोक के परिजनों ने भी उसकी गुमशुदगी की रिपोर्ट लिखा दी थी। पर न अशोक का पता चल पा रहा था और न पुलिस उसे ढूंढ़ पा रही थी। पुलिस के खोजी कुत्तों ने भी जवाब दे दिया था। बेटे के इस तरह से गायब होने से अशोक के पिता शमशेर और माता कौशल्या गहरे दुख में थे और उनके आंसुओं की बरसात थमने का नाम नहीं ले रही थी। शमशेर की तबियत बिगड़ने लगी थी और कौशल्या उनकी तबियत को काबू में लाने के लिए बार—बार इस डाक्टर— उस डाक्टर के चक्कर काट रही थीं।
देहरादून के पास की सराय में छिपे—छिपे रहते हुए अशोक को छह दिन हो गए। वह उधेड़—बुन में था कि क्या किया जाए, क्या नहीं किया जाए। तभी उसे लगा कि कुछ समय के लिए उसका बाहर जाना ठीक रहेगा।
क्रमश:
(काल्पनिक कहानी)