रचनाकार: सुनीता मिश्रा, देहरादून
आज उसे खुद पर गुस्सा आ रहा है , क्यों नहीं उसने मम्मी की बातों पर ध्यान दिया क्यों नहीं खाना बनाना सीखा।
तभी रश्मि के दिमाग की बत्ती जैसे जल गई ! उसने झट से अपनी मम्मी को फोन लगाया।
हेलो मम्मी मैं वीडियो कॉल कर रही हूं आप जूडो, और मुझे खाना बनाना है! आप बताते चलो मैं खाना बनाने जा रही हूॅं।
पूरे 2 घंटे तक मम्मी को वीडियो कॉल पर व्यस्त रखने के बाद आखिरकार रश्मि का खाना बन चुका था ।
वह सब कुछ जो सासू मां को पसंद था , और उनके सेहत के लिए भी सही था। रश्मि हॉस्टल में अपनी सहेलियों के साथ कभी कभार थोड़ा बहुत खाने के छोटी मोटी आइटम बना लिया करती थी।
दो घंटे किचन में व्यस्त रहने के बाद रश्मि थक हार कर हाॅल के सोफे पर बैठ गई । ऐसा लग रहा था जैसे उसने कोई बहुत बड़ी जंग जीत ली हो।
मोबाइल पर रिंगटोन देखा तो यश का फोन था।
हां बोलो ! कहां तक पहुंचे, कितने देर में आ रहे हो।
थकीहारी रश्मि ने दो सवाल एक बार में ही दोहरा दिया।
बस दस मिनट में पहुंच रहे हैं । अच्छा सुनो दूध है न ? या रहने दो आते हैं फिर देखते हैं।
यश ने प्रश्न और उत्तर खुद ही देते हुए कॉल कट कर दिया।
रश्मि समझ गई दूध है, मतलब चाय बनाने के लिए यश बोलना चाह रहे थे किंतु बोल नहीं पाए।
वो झटपट उठ किचन में आई और चूल्हे पर चाय रख सिम आंच कर फिर हाल में आकर बैठ गई।
रश्मि को आज एक आत्मग्लानी हो रही थी उसने कभी भी अपनी मम्मी का हाथ किचन में नहीं बटाया था । इतने सारे काम मम्मी अकेले करती थी। सिर्फ एक दिन दो घंटे किचन में खड़े रहने पर वह थक गई थी किंतु मम्मी बरसों से घर का सारा काम अकेली करती आई थी। काश ! उसे इस बात का एहसास पहले हुआ होता।
सास ससुर और यश के आते ही रश्मि ने चाय और पानी लाकर उनके सामने रख दिया।
अरे वाह ! बहू तो चाय बना लाई , तुम तो बोलते थे कि कुछ भी बनाने नहीं आता।
सासु माॅं ने बड़े प्यार से रश्मि को निहारते हुए कहा।
कैसी बनी है चाय? रश्मि ने सकुचाते हुए पूछा!
बहुत अच्छी बनी है तुम अपने लिए नहीं बनाई ?
अपना भी लेकर आओ।
हां अभी लाती हूॅं ,और रश्मि किचन में रखा अपना चाय उठा लाई।
“चाय का पहला घूंट लेते हुए उसका मुंह कड़वा हो गया बिना चीनी की चाय थी!
रश्मि झिझकते हुए सासू माॅं की तरफ देखते हुए बोली ! सॉरी मम्मी आपने बताया नहीं चाय में तो चीनी डालना ही मैं भूल गई।
सासू माॅं बोली —चाय में चीनी नहीं है यह बड़ी बात नहीं है बेटा! तुमने चाय बनाई यह बड़ी बात है। हर इंसान के अंदर गुण और अवगुण दोनों होते हैं । गुण छुपा होता है। उसे पहचानने की और उजागर करने की जरूरत होती है। एक और अच्छी बात है , इंसान अपनी गुणों की चर्चा न करके अपने अंदर के औगुण को भी याद रखें तो यह हमारी रोजमर्रा की जिंदगी को बेहतर और अहंकार मुक्त बनाती है!
तभी यश किचन का जायजा लेने के बाद लिविंग एरिया में आकर मुस्कुराते हुए बोला , मम्मी पापा जल्दी से आप लोग कपड़े चेंज कर लीजिए । खाना तैयार है चलिए एक साथ खाने बैठते हैं।
रश्मि ने एक सुकून भरी मुस्कान अपने सास- ससुर के होठों पर खिलते हुए देखा ।
और रश्मि सोचती रही इस खूबसूरत मुस्कान के हकदार हैं यें लोग। जिन्होंने अपने इतने संस्कारी बेटे को मुझे सौंप दिया। उन्हें अपने झोली में सुकून और खुशी समेटने का हक है।
(काल्पनिक रचना)
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