चैप्टर -2
उधर, योगेश की मां अपने नित्य कार्यक्रम के अनुसार चूल्हा—चक्की से बरी होकर दोपहर में अपने पड़ोसी रामनाथन के घर पहुंचीं।
रामनाथन की पत्नी कृष्णामूर्ति अपने पसंदीदा सुपरस्टार रजनीकांत की मूवी शिवाजी द बॉस टीवी पर देखने लगी थीं। रामनाथन स्थानीय पब्लिक स्कूल में टीचर हैं। योगेश की मां ने अपने बेटे के साथ टिफिन को लेकर हुई चख—चख के बारे में कृष्णा से कहा।
इस पर कृष्णा ने टीवी का वॉल्यूम कम करके कहा — मैं समझी। ये बीमारी अपने घर में भी जी! आज मैंने इनको लंच के लिए इडली—सांभर रखा तो ये भी मेरे से बहोत गुस्सा हुआ। बोला— ये क्या रोज—रोज इडली—सांभर! लगता तुमको कुछ नया डिश बनाना नहीं आता। तभी तुम रोज—रोज इडली—सांभर बनाकर रख देता। मेरे को माफ करो जी, आज नहीं खाना ये इडली—सांभर! मैं स्कूल की कैंटीन से ही कुछ ले लूंगा। ये कहके वो बिना कुछ खाए ही स्कूल चला गया! इसलिए मैंने भी आज अभी तक खाना नहीं खाया।
ललिता— खाना नहीं छोड़ना था। यह तो अन्न का अपमान है।
कृष्णा— अब देखो न! इस फिल्म का सुपरस्टार रजनी कितना अच्छा बोलता —विद्या भारती के हाथ से तो मैं जहर भी खा लूंगा। पर इतने प्यार से बनाए इडली को मेरे हसबैंड ने इडली को मुंह भी नहीं लगायां।
ललिता— यह ठीक नहीं। और तुम्हारी बेटी वर्तिका का क्या? वह कॉलेज गई? वह क्या ले गई टिफिन में?
कृष्णा— वर्तिका तो बहुत सीदी! पहले उसने इडली—सांभर देखकर मुंह जरूर सिकोड़ा पर बाद में न केवल ढेर सारा इडली—सांभर अपने टिफिन में ले गया बल्कि चार इडली वह ब्रेकफास्ट के तौर पर भी ले गया !
ललिता — चलो अच्छा हुआ। अब देखो न सुबह कितनी भी जल्दी उठ जाओ, इतने काम रहते हैं कि खाना बनाने का काम जल्दी—जल्दी निपटाना पड़ता है। आफिस, स्कूल आदि तो समय पर पहुंचना ही होता है। इसलिए जल्दबाजी में जो बनता है, बना देते हैं।
जब दोनों महिलाओं का बातचीत का कोटा पूरा हो गया तो ललिता ने अपने घर की राह पकड़ी। वह रास्ते में ही थी कि सुलोचना दिख गई। सुलोचना बिहार की है और दो माह पहले ही उसकी शादी हेमेंद्र यादव से हुई थी। सुलोचना ने ललिता को नमस्कार किया और इन दोनों के बीच बातचीत शुरू हो गई।
सुलोचना— आंटी, कहां से आ रही हैं?
ललिता — अरे! यहीं गई थी जरा कृष्णा के घर! उसकी रामायण सुनकर आ रही हूं।
फिर उसके बाद ललिता ने बताया कि वे सब कैसे अपने—अपने घरों में परेशान हैं। कैसे हर सुबह और कभी—कभी शाम को खाने में क्या बना? के मुद्दे पर दोनों परिवारों के सदस्यों के बीच तनाव हो जाता है। तमाम बातें करने के बाद ललिता ठंडी आह भरकर बोली— क्या करूं सुलोचना मैं तो बहुत परेशान हूं। कुछ समझ में नहीं आता कि कैसे इस समस्या को सुलझाउं?
सुलोचना — अभी हमरा तो नया—नया सादी हुआ है। इसलिए हमको कोनो दिक्कत नहीं है। हम इनको जो भी बनाकर खिलाते हैं, बेचारे चुपचाप खा लेते हैं। हां, कल जरूर हमसे कुछ गलती हो गया। हम दोनों टाइम इनको लिट्टी—चोखा परोस दिए। इससे उ थोड़ा नाराज हुए। कुछ बड़बड़ाए भी। पर ज्यादा कुछ नहीं बोले। फिर देर रात तक इनका मूड सही हो गया तो हम दोनों बढ़िया से सो लिए।
क्रमश:
(काल्पनिक कहानी)