चैप्टर -3
सुलोचना — पर ज्यादा कुछ नहीं बोले। फिर देर रात तक इनका मूड सही हो गया तो हम दोनों बढ़िया से सो लिए।
ललिता— चलो, अच्छा हुआ।
सुलोचना — वो तो ठीके है। पर हम भी अक्सर लिट्टी—चोखा बना—बना के और खा—खा के ऊब जाते हैं। हमरा मन भी अलग—अलग तरह का खाना खाने को करता है। समझे में नहीं आता है कि कतना नेट पर देख—देख के तरह—तरह के व्यंजन बनाना सीखें। फिर इनका सैलरियो कम है। ज्यादा खरचा नहीं कर सकते। संभाल के महीना काटना पड़ता है।
सुलोचना की बातै सुनकर ललिता को भी लगा इसकी समस्या भी वही है जिससे वह जूझ रही है। बस, ये है कि नई—नई ब्याहता होने के कारण इसका पति इसे खाने—वाने को लेकर ताने नहीं मारता होगा। फिर वह कुछ सोचते हैं कहकर अपने घर पहुंच गई।
शाम को चार बजे जब ललिता चाय पीने बैठी तभी दया बेन का फोन उसके पास आया।
ललिता— हलो! दया बेन! कैसी हो?
दया — मजा मां छू। आज हम अपने घर पर शाम 6 बजे दीवाली मिलन समारोह कर रहे हैं। आप सब आना। खाना—पीना होगा। खूब धमाल करेंगे!
ललिता — ठीक है। बहुत—बहुत धन्यवाद दया बेन!
दया बेन गुजराती कॉलोनी में रहती हैं और ललिता नेहरू नगर में। इन दोनों कॉलोनियों के बीच करीब चार किलोमीटर का फासला है। दया के उसके पति जेठालाल अंबानी शहर के बहुत बड़े बिल्डर हैं। ये लोग अक्सर दीवाली होने के दस—बारह दिन बाद हर साल अपने परिचितों और इष्ट—मित्रों का मिलन समारोह रखते हैं। इस पार्टी में उन्होंने ललिता के अलावा अमर सिंह, कृष्णा और सुलोचना के परिवारजनों को भी बुलाया है।
शाम को तय समय पर सबलोग सज—धज कर जेठालाल के घर पहुंच गए। वहां की रंगत देखने लायक थी। ड्राइंग रूम फूलमालाओं और रंगीन लाइटों से सजा हुआ था। पच्चीसेक कुर्सियां करीने से मेहमानों के लिए लगाकर रखी हुई थीं। एक दीवार के सहारे खाने—पीने के लिए तमाम चीजें सजाकर रखी हुई थीं। अंबानी का परिवार मेहमानों का मुस्कराकर स्वागत करते हुए उन्हें कुर्सियों पर बैठने का आग्रह कर रहा था।
इस पार्टी का सबने जमकर लुत्फ उठाया। लोगों ने जलेबी—फाफड़ा, खमण ढोकला से शुरू कर वहां रखे तमाम सुस्वादु व्यंजनो का जमकर आनंद लिया। फिर अंबानी से सबको बतौर तोहफा चांदी का एक—एक सिक्का दिया। जब पार्टी वगैरह निपट गई और दया बेन खाली दिखीं तो अमर सिंह, कृष्णा और सुलोचना ने उन्हें घेरकर बैठ गए। जेठालाल भी उन लोगों के साथ बैठे।
ललिता ने बात शुरू करते हुए कहा — जेठाजी! इस शानदार पार्टी के लिए आप सबको बहुत—बहुत धन्यवाद! कम से कम आज हम इस झंझट से बच गए कि रात के खाने में क्या बनाना है! दरअसल, हम सब अपने—अपने घरों में बनने वाले खाने को खा—खाकर उकता चुके हैं। ऐसे में आपके द्वारा दी गई पार्टी हमारे लिए बेहद सुकून पहुंचाने वाली है।
क्रमश:
(काल्पनिक कहानी)