चैप्टर-2
मेरा छोटा भाई नीलेश तब अपने दोस्तों के साथ महाराष्ट्र घूमने गया हुआ था। उसका इतनी जल्दी लौटना मुमकिन नहीं था।
ऐसे में जब अस्पताल वालों ने पिताजी के मोबाइल से मेरा नंबर निकाल कर मुझे फोन लगाया और इस भीषण हादसे की सूचना दी तो मैंने फटाफट एक बाइकवाले को पैसे दिए और मन में उमड़ते चिंताओं के सैलाब को जैसे.तैसे संभालकर उसके साथ सीधी की ओर रवाना हो गया। बाइक वाले अच्छे से गाड़ी चलाई अतः करीब 800 किलोमीटर का मेरा यह सफर कोई 12 घंटे में पूरा हुआ।
उधर रिजल्ट वाले दिन ही शीतल की मम्मी शैलजा के लंग्स में इन्फेक्शन का मामला बेहद गंभीर हो गया। जशदीप अस्पताल के डाॅक्टरों ने उन्हें वेंटिलेटर पर रखने की सलाह दी ताकि उनकी धीमी हो रही सांसों से जिंदगी को जो खतरा हो रहा थाए वह कम हो जाए। मम्मी की ऐसी हालत देखकर शीतल के पापा रजत ने बेटी को फोन लगाकर फौरन घर आने को कहा। वह अच्छी और आज्ञाकारी लड़की थी। उसने भी बिना एक पल गंवाए जल्दी.जल्दी छोटा सा बैग जमाया और करीब ढाई घंटे के भीतर ट्रेन से चलकर नीमच पहुंच गई।
कुछ दिनों बाद इन घटनाओं या यों कहें दुर्घटनाओं के रिजल्ट आने शुरू हुए। हादसे में बुरी तरह से घायल मेरे पिता ने दम तोड़ दिया और उधरए नीमच में शीतल की मम्मी का निधन हो गया। ये दोनों अपने-अपने परिवारों की धुरी थे। पूरे परिवार की अर्थव्यवस्था का जिम्मा इन्हीं के कंधों पर था। शीतल की मम्मी को उसके पापा शैलेंद्र के निधन के बाद आधी विडो पेंशन मिलती थी और मेरे पापा भी एक साल पहले रिटायर होकर पेंशन होल्डर थे।
इन अनायास हुए हादसों ने हमारी जिंदगी की धारा बदल दी। हम दोनों अपने.अपने दायरे में कैद रहकर खुद को संभालने में और बाकी जिंदगी संवारने की कोशिश करने में लग गए।
शीतल ने नीमच में ही एक स्कूल में टीचिंग का जाॅब शुरू कर लिया और मैंने इंजीनियर बनने का सपना छोड़कर स्टेशनरी की एक दुकान में नौकरी शुरू कर दी। इस प्रकार हम दो, दो धाराओं में बंट गए और जवानी के दहलीज पर हमने अपनी जिंदगी साथ.साथ बिताने के जो सपने बुने थे, वे बिखर गए।
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मुझे वे दिन याद आए जब काॅलेज में अधिकतर समय एकसाथ बिताने की कोशिश करते थे। वार-त्यौहार की छुट्टी पर अपने होस्टल से कुछ दूर स्थित मिलन सिनेमा में पिक्चरें देखने जाया करते थे। कभी मनभावन रोस्टोरेंट में जाकर अपनी शामें बिताया करते थे।
बीटेक के आखिरी वर्ष में ऐसे ही एक शाम जब हम दोनों मनभावन रेस्टोरेंट की एक काॅटेज में साउथ इंडियन डिशेज का आनंद ले रहे थे तो मैंने उसके प्रति अपनी कोमल भावनाओं का इजहार कर दिया था।
बारिश के दिन थे। जैसे ही मेरे मुंह से निकला- शीतल! अब मैं चाहता हूं कि अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद जब अपना करियर शुरू करें तो बाकी की जिंदगी भी साथ-साथ बिताएं! यह सुनकर पहले तो शीतल अवाक रह गई और अपनी कुर्सी से उठ खड़ी हो गई। तभी जोरदार बिजली की गड़गड़ाहट हुई और रेस्तरां में अंधेरा छा गया।
क्रमशः
(काल्पनिक कहानी)