-विजय कुमार तैलंग, जयपुर (राजस्थान)
ऐसे ही एक सुबह स्वामी श्री देवी चरण महाराज जी के घर के द्वार पर एक साधारण सा व्यक्ति आकर खड़ा हो गया जिसे देख महाराज जी आश्चर्य चकित रह गए।
“राम फूल?” उसे देखते ही महाराज जी बोले।
“जी हाँ, महाराज जी! ” उस व्यक्ति ने महाराज जी के चरणों में झुकते हुए सहमति जताई।
“आज अचानक कैसे? सब कुशलमंगल तो है न?” महाराज जी बोले।
राम फूल असल में श्री जगत नारायण जी का पुराना और विश्वासपात्र नौकर था और अभी भी उन्हीं की सेवा में लगा हुआ था। उसे समाज के लगभग सभी लोग जानते थे।
“कुशलमंगल अब कुछ नहीं है महाराज जी। मालिक चल बसे।” राम फूल भरे गले से बोल उठा। उसके आँसू बहने लगे।
स्वामी श्री देवी चरण महाराज जी, जो श्री जगत नारायण जी के दूर के रिश्ते से भाई भी लगते थे जिसे श्री जगत नारायण जी ने कभी मान्यता नहीं दी, न ही उनसे कभी कोई संपर्क रखा, अचानक ऐसा समाचार मिलते ही असहज से हो गए। उन्हें इस बात का बेहतर पता था कि श्री जगत नारायण जी की अंतिम यात्रा में जाने के लिए सहज ही कोई शायद तैयार हो पाए परंतु एक प्रयास के तहत और अपने व्यक्तिगत प्रभाव के प्रयोग से उन्होंने समाज के कुछ क्रियाशील व कुछ वरिष्ठ जनों से संपर्क साधा। कुछ वार्तालाप भी हुए। अंततः स्वामी श्री देवी चरण महाराज जी की बात मानते हुए कुछ लोगों ने इकट्ठा होकर श्री जगत नारायण जी का अंतिम संस्कार करवाने की बात मान ली। समाचार पत्रों में उनके निधन के समाचार छपवा दिये गए। सादगी से कुछ समाज के लोगों की उपस्थिति में उनका अंतिम संस्कार हो गया। उनके ऊँचे सम्पर्कों से कुछेक शोक संदेश तो आये लेकिन कोई भी व्यक्तिश: मिलने नहीं आया।
ये सब होने के बाद समाज के सभी सदस्य अपने रोजमर्रा के कार्यों में व्यस्त हो गए तभी श्री जगत नारायण जी के वकील ने समाज के लोगों को इकट्ठा करवाने की बात कही। सभी किसी संशय में थे कि श्री जगत नारायण जी के वकील को ऐसी क्या जरूरत पड़ गई किंतु सभी उत्सुकतावश इकट्ठा हुए तब वकील ने श्री जगत नारायण जी की मृत्यु पूर्व लिखवाई गई वसीयत पढ़नी शुरू की जिसके अनुसार श्री जगत नारायण जी की विशाल कोठी एवं संपूर्ण परिसर अपने समाज की संस्था को दान दे दी गई थी ताकि समाज की जरूरत जो सामुदायिक भवन बनवाने की थी वो पूरी हो सके। वसीयत सुनकर एकबारगी समाज का हर सदस्य हक्का-बक्का रह गया लेकिन जो सत्य था वो कहा गया था।
कालांतर में श्री जगत नारायण जी का निवास, समाज का एक आलीशान व खूबसूरत सामुदायिक भवन बन गया जहाँ समाज के लोगों के विभिन्न सामाजिक कार्यों के लिए लंबा चौड़ा परिसर व भवन तथा अन्य सुविधाएं न्यूनतम शुल्क पर उपलब्ध होने लगी थी।
उस आलीशान परिसर में प्रमुख द्वार के सामने लंबे चौड़े बगीचे में ऊँचे से पेडेस्टल पर एक छोटी सी पत्थर की मूर्ति भी लगी थी जिसके नीचे लिखा था – “स्वर्गीय श्री जगत नारायण जी!”
(काल्पनिक रचना)
No Comment! Be the first one.