रचनाकार : उत्तम कुमार तिवारी ” उत्तम “, लखनऊ
चैप्टर-1
गुरुदीन अपने गाँव रमई पुर मे एक कच्चे मकान मे रहते हैं | वो बहुत मिलनसार थे और उनकी पत्नी गुलाबो भी एक सुन्दर और सुशील महिला थी | इस परिवार की उनके गाँव मे बहुत इज्जत थी | उनकी जीविकोपार्जन का साधन उनकी चलती फिरती दुकान थी चप्पल जूता बनाने की और बहुत थोडी सी खेती थी और साथ मे दो भैसे थी और चार बकरी जिनका दूध भी उनकी कमाई का जरिया था |
उनके चार बेटियां और तीन लड़के थे | बचपन मे उनके पिता की असमय निधन हो जाने के कारण तीन बहने और माँ भी उनकी ज़िम्मेदारी थी | कुल मिला कर उनका परिवार तेरह लोगो का था | सब लोग बहुत हंसी खुशी के साथ रहते थे |
परिवार बडा होने के कारण उनकी आर्थिक स्थिति ठीक नही थी | किसी तरह उनके परिवार का जीवन चल रहा था | आर्थिक परेशानियां होने के वावजूद पूरा परिवार हंसी खुशी के साथ रहता था | किसी तरह की कोई लडाई झगडा नही होता था | सब लोग अपने अपने काम मे लगे रहते थे |
गुरुदीन सुबह रात का रखा बासी खाना खा कर जूता चप्पल बनाने का सामान ले कर पैदल निकल जाते थे | वो गाँव गाँव जा कर जूता चप्पल बनाते थे , मजदूरी मे उनको कुछ नगद मिल जाता था तो कुछ रकम फसल कटने पर मिलती थी | उनकी पत्नी सुबह उठ कर भैसो का दूध दुह कर गाँव की डेरी मे पहुचा कर आ जाती थी फिर वो भी बासी रोटी खा कर गाव मे लोगो के खेतो मे मजदूरी करने चली जाती थी |
यहां घर पर सभी बच्चे मिल कर घर का सारा अंन्य काम करके जानवरों को चराने चले जाते थे | घर मे गुरुदीन की अम्मा और बहिन बिटिया रह जाती थी | वो लोग भी घर मे कुछ न कुछ किया करती रहती थी |
परिवार बडा होने की वजह से घर मे भोजन भी ज्यादा बनता था तो घर मे बेटियो का काम होता था जात (चकिया बडे पत्थर की ) से गेहूं पीसना | रोज का रोज गेहू पीसना तथा धान कूटना |
गुरुदीन की अम्मा रोज जंगल से लकडी बीन कर लाती थी| ये काम उनके जिम्मे था | फिर चूल्हे मे खाना बनता था | दोपहर मे सब लोग आ जाते थे | सबसे पहले गुरुदीन और उनकी अम्मा साथ में खाना खाते थे फिर बचे सब लोग साथ मे खाते थे | उसके बाद चौका बर्तन होता था |
कुछ देर आराम करके फिर सब लोग अपने अपने काम पर चले जाते थे | यही उनकी दिनचर्या थी | धीरे धीरे गुरुदीन को अपनी बहन की शादी की चिंता होने लगी |
क्रमशः
(काल्पनिक कहानी)