चैप्टर—1
उस दिन संजना की खुशी का कोई ठिकाना नही था। वह खुश होती भी क्यों नहीं? उसके भोपाल वाले मामा अंकित अखरोट का एक बहुत बड़ा पैकेट लेकर आए थे। संजना अपने मामा से लड़ियाते हुए जब भी मन करता पैकेट में से एक—दो अखरोट निकालकर खा लेती। साथ ही, वह बीच—बीच में गाना गाती रहती— चंदा मामा से प्यारा मेरा मामा, मेरी आंखों का तारा मेरा मामा!
मामा संजना को खुश देखकर बहुत खुश थे। उन्हें लग रहा था कि उनका गांधीनगर आना सफल हो गया है।
अंकित एक प्राइवेट दवा कंपनी में मेडिकल रिप्रेंजेंटेटिव हैं और आफिशियल टूर के सिलसिले में गांधीनगर आए हुए थे। संजना उनकी प्यारी सी 14 वर्षीय भांजी है। वे उसे बेहद प्यार करते हैं। वह अपनी मम्मी आरती और पापा राकेश के साथ गांधीनगर में रहती थी। राकेश एक सरकारी आफिस में बड़े बाबू की नौकरी करते हैं। इकलौती होने के नाते आरती और राकेश भी संजना को बेहद प्यार करते हैं। वे उसके लालन—पालन में कोई कसर नहीं छोड़ रहे थे। उन्होंने शहर के एक महंगे स्कूल सरदार वल्लभ भार्ई पटेल पब्लिक स्कूल में संजना का दाखिला करा दिया था।
संजना को उस दिन स्कूल जाने का मन बिलकुल नहीं कर रहा था। उसकी वजह एक तो मामा की घर में मौजूदगी थी तो दूसरी वजह अखरोट का पैकेट था। न वह मामा को छोड़ना चाहती थी और न ही अखरोटों को।
जब स्कूल जाने के प्रति उसका ढीला—ढाला रवैया आरती ने देखा तो उसका पार चढ़ने लगा। उन्होंने फटकार भरी आवाज में कहा — बेटा! फटाफट स्कूल के लिए तैयार हो जाओ। नहीं तो बस छूट जाएगी। फिर पापा को तुम्हें छोड़ने जाना पड़ेगा। वैसे कल देर रात तक आफिस का ही निपटाते रहे थे। वे ठीक से सो भी नहीं पाए हैं। यदि तुम्हें छोड़ने जाना पड़ा तो उन्हें आफिस जाने में देर हो जाएगी।
मम्मी की फटकार सुनकर संजना के कान पर जूं तक नहीं रेंगी। वह मामा के साथ वैसे ही धमाल—मस्ती करने में लगी रही। और जब भी उसे तलब लगती पैकेट में से अखरोट उठाकर खाने लगती। जब भी वह अखरोट खाती, सोचने लगती — कितने यम्मी हैं ये अखरोट! मन कर रहा है मुट्ठी भर—भर कर खा लूं।
पर मम्मी—पापा के डर से वह ऐसा नहीं कर पा रही थी। जहां चाह, वहां राह की नीति पर चलते हुए वह कभी नजरें बचाकर तो कभी दरवाजे के पीछे जाकर अखरोटों पर हाथ साफ करती रहती।
जब मम्मी ने देखा कि उनकी बातों का संजना पर असर नहीं हो रहा है तो उन्होंने राकेश से उसकी शिकायत कर दी। राकेश आफिस जाने में लेट होने के कारण वैसे भी झुंझला रहे थे। वे कड़क आवाज में बोले — संजना! चलो स्कूल—ड्रेस पहनो और बस स्टाप की तरफ रवाना हो जाओ। नहीं तो समझ लेना मैं तुमसे कुट्टी कर लूंगा।
अंकित भी संजना के अखरोट प्रेम को देखकर हैरान हो रहा था। उसने अपने जीजाजी के सुर में सुर मिलाते हुए कहा —बेटा! जल्दी तैयार हो जा। नहीं तो घर का अच्छा खासा माहौल खराब हो जाएगा।
क्रमश:
(काल्पनिक कहानी)